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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) कों कोइ-न-बतला सके-तो-सबुतहोगाकि-नाहक ! हठवाद करतेहै-और पाठ बतला सकते नही, किताब-तीनस्तुति प्राचीनता-सफह ( ४ ) पर दलीलहै पीछेसे कोइ कोइ आचार्योके विचारमें आयाकि व्यंतरदेव इससमय आराधनेमेंआवेगे तो शासनकी रक्षाहोगी. और बौद्धादिक अन्यदर्शनीहै वे इसप्रकार चमत्कार देखातेहै-तो-अपने अनुयायीजो श्रावकहै उनके लिये जोकुछ उपाय-न-विचाराजायगा तो कितनेक दिनोमें सम्यक्तकों खो बैठेगे, एसा बिचारकरके हरिभद्रमूरिजीने ललितविस्तराग्रंथमें व्यंतरदेवोकी स्तुति लिखी. (जवाब.) आचार्य हरिभद्रमुरिजीने चोथीथुइ नही बनाइ, बल्कि, पहिलेसे है, अगर प्रतिक्रमणमें वैआवच्चगराणंसंतिगराणं सम्मदिठिसमाहिगराणं, पाठको-मंजुररखतेहो-तो-चोथीथुइ सबुत हुइ, अगर मंजुर नहीरखोहो-तो-कहदो यहपाठभी हमनहींमानते, जैसे चोथीथुइ इनकारहुइ वैयावचाराणं-पाठकोंभी इनकारकरदो, खयाल करो! अगर जैनशाखोमें चोथीथुइ मंजुर-न-होतीतो-बैयावत्यकरनेवालों काकार्योत्सर्ग करनाकैसे मंजुरहोता, अगरकोइकहे चोथीथुइ पीछेसे • बनाइहै-तो-बतलावे ! तीर्थकरगणधरोकी बनाइहुइ तीनथुइकी त्रिपुटी कौनकौनसीहै ? जैसे चारथुइकी चोकडी मौजूदहै-वैसे तीनथुइको त्रिपुटीभी होनाचाहिये, मगरकैसेहो ? जोबातनयीहो उसका सबुतकहांसे आवे ? और वगेरसबुतके कोइबात असरनही दिखलासकती, हरशख्शकों लाजिमहै अपनी तेहरीरका सबुतबयानकरे, आचार्यहरिभद्रसूरिजीने कोइनयीबात बयाननही फरमाइ, जोकदीमसे चलीआतीथी उसीको फरमाइहै, हरखासो आमकों वाजहहो किसीजैनशास्त्रमें नहीं लिखा चोथीथुइ वीतरागदेवकी वैरिणीहै, विनासबुत कोइबात बयान
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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