SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) जैनोमें किसीरागीद्वेषीदेवोकीपूजानहाहोती, वीतरागभगवानकीपूजा निकामभावसेंहोतीहै,रागीद्वेषीदेवोंकीपूजाकरकेसंसारिक-वस्तुमांगनेमेलगरहना-जैनशास्त्र मनाकरताहै, (जवाब.) हमलोग-रागीद्वेषीदेवोंकापूजाकभी-नहीकरते-औरन-संसारिक-वस्तुमांगनेमें लगेरहतेहै, हमारेजैनमजहबमेंवीतरागभगवान्हीकी-निष्कामभावसेंपूजाहोतीहै,-लेखक अगर जैनमजहबमें पावंदहै-तो-उपर लिखीहुइबातकों कुबुलकरे, और इसबातपरदाफत उनकेपक्षानुथायी-मुनिलोग-प्रतिक्रमणमें बेठकर देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए पाठ हरहमेश बोलतेहै-या-नही ? अगरबोलतेहै-तो-इसकी क्या वजहहै ? और इसवातकीभी तलाशकरेकि-श्रुतदेवीका-और-क्षेत्रदेवीका कायोत्सर्ग करतेहै-या नही ?-अगर करतेहै-तो-उसका क्यासबबहै ? इसका खुलासा जाहिरकरे, हमलोग घरकभेदीहै,कोइ हजार चतराइकरे मगर अकलमंदोके सामने एकभी नही चलसकती, तीनस्तुतिप्राचीनता-किताब-सफह-(२) पर लेखक तेहरीरकरतेहैकि-कितनेकदेव-जैनशाखमें अधिष्ठातातरीके मानेजातेहै,-जैनोमें-या-जैनशास्त्रपर खामीआतीहै-तब-वे-अधिष्टायकदेव-रक्षाकरतेहै, इसपकारसम्यकदृष्टि देवोकी-स्तुति-किसीकिसीवख्त-करनीपडतीहै, (जवाब.) किसीकिसीवख्तभी सम्यक्दृष्टिदेवोकी स्तुतिकरना क्यौं मंजूररखतहो, ? तुमतो निस्पृहतारखनेवालेठहरे, फिर सम्यक्हष्टिदेवोंकि स्तुतिकरके अपनी-निस्पृहता क्यों खोतेहो ? जब निस्पृहताका झंडा उठायाथा-तो-पुरा उठानाथा, और आमलोगोंका मालू. महोकि-देखिये ! यहां लेखकमहाशयने अधिष्ठातादेवोंको रक्षाकरने
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy