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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (२५) (जवाब तीनस्तुतिप्राचीनता किताबका,) किताव-तीनस्तुति प्राचीनता नामसे जो जावरेवालोंकी तर्फसे छपकर जाहिरहुइहै, जिसके पंने कुल्ल (१४) है उसके अवलपृष्टपर तेहरीरहै,-आशारहित धर्मानुष्टान स्वीकारकरना, मोक्षसेलेकर सर्वत्र वस्तुओमें मुनिलोगोको निस्पृहता रखना इसीका नाम उत्तममुनिहै, (जवाब.) लेखक जिसकों गुरुमानतेहै-वे-उत्तम मुनिकी पंक्तिमें है-या-मध्यममें ? अगर कहाजाय उत्तममुनिकी पंक्तिमें है-तो-बतलाना चाहिये शुभहशामके प्रतिक्रमणमें-देवाणंआसायणाए-देवीणं आसायणाए-ऐसापाठ क्यों हरहमेश बोलतेहै. ? देखो ! (आवश्यक सूत्रका मूल पाठ यहां देतेहै.) "देवाणं आसायणाए-देवीणं आसायणाए-" आवआवश्यकसूत्रकीटीकाकापाठ-आशातनया अवहीलनया -याकर्मबंधरुपो-अतिचारः कृतः-तस्मात्-प्रतिक्रमामिनिवर्ते-इत्यर्थः खास आवश्यकसूत्रका मूल-और उसकी टीकाका पाठ फरमाताहैकि-मुनिप्रतिक्रमणमें ऐसापाठबोले मैनेदेवताकी और देवीकी आशातनाकिइहो-तो-उससेमैं-अतिक्रमताहुं-अर्थात् निवर्तनहोताहुं. (यानी) पीछा हठताहुँ, कहिये ! इसपाठका मतलब क्या हुवा ? और इसपाठकों सचमानना-या-जूठ ? अब कहनेवालोंकी निस्पृहता कहां रही ?-अगर आशारहित धर्मानुष्टान करना और मोक्षसेलेकर सर्वत्र वस्तुओमें निस्पृहतारखना मंजुरहै-तो-यहपाठ प्रतिक्रमणमें क्यों बोलते हो ? मुहसें कहनाही जानतेहो-या-कुछ सबुतभीरखतेहो ?-जैसे चोथीथुइको वीतरागदेवकी वैरिणी कहतेहो इसपाठकोंभी वीतरागदेववैरी कहदो, तमाममुनिलोग इसपाठकों प्रतिक्रमणमें बोलतेहै, किसकी
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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