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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श) (२३) 3 (बीचबयान पर्युषणनिर्णयपत्रिका. पर्युषणनिर्णयपत्रिका पृष्ट (२) पर दलीलहै जैनपत्रद्वारा कइ महाशयोके पुछेहुवे प्रश्नोंकी भरमाररहतीहै उसमें जोकोइ सिद्धांतविपरीत बातहै उसको अज्ञमंदबुद्धिवालेभव्य-मान-न-लेवे. (जवाब.) खिलाफतेहरीरजैनसिद्धांतके एकभीबात विद्यासागर नही लिखते. लेखोकी भरमाररखना अकलकेताल्लुकहै जिनोने शास्त्रपढनेकी पुरीकसरत किइहोगी वहीलेखोंकी भरमार रखसकेगे. विद्यासागरके लेखोसें आमलोग फायदा उठगसकतेहै, क्योंकि उनके लेख इन्साफीहोतेहै, लेखकको अगर विद्यासागरके लेख नागवारगुजरतेहो तो उनकेलेखोसे परहेजकरे, विद्यासागरका कोइनुकशान नही, पर्युषणनिर्णयपत्रिका पृष्ट (१०) पर मजमूनहै आषाढसुदीपुनमका पर्युषणहै, वह उत्सर्ग है, अपवादसेतो भाद्रवसुद पंचमीका है, पृष्ट (१४) पर यहभी लिखाहै यह प्रश्न मणीलाल धोलेरावालोने न्यायरत्नकों पुछाथा, उसकों और हमारे लेखकों बांचकर निर्णयकरियेकि-सत्य-असत्य लेख कौनसा है, ? . . (जवाब.) बांचकर देखलिया, तुमारा लेख न्यायरत्नके लेखके सामने कमजोरहै,-न्यायरत्नने जो जैनपत्रमें मणिलाल धोलेरेवालोंके सवालोका जवाब दियाथा बहुतदुरुस्तथा, आजतक उसकों किसीने गलत नही फरमाया, लेखकने पूर्वपक्ष क्यौं-न-लिखा. ? मगर लिखेक्या ? जो बात सचहो उसको गलत कौनकहसकताहै, ?: अकलमंदोकों लाजिमहैजिसकाखंडनलिखे पूर्वपक्ष बतलाकर उत्तरपक्ष देवे, जैसाकि-हमने इसकिताबमें दियाहै,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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