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________________ दिबाचा,( बयाने-शुरुआत-किताब,- ) जब हमाराचौमासा-व-मुकाम-जबलपुरथा-पांचोरा-जिलाखानदेशक श्रावकोने हमको कइखतभेजे, और अर्ज गुजारीशकियकिआप यहां तशरोफलाकर हमलोगोकों तालोमधर्मकी देवे, जिसकी वजहसें हम धमचुस्तवने और फेजपावे, हमने उनको अर्ज कुबुलकिड और ब-सवारीरेल जबलपुरसे रवानाहोकर ब-मुकाम-पांचोरा आये, तमाम जैनश्वेतांबरश्रावक टेशनपर वास्तेपेशवाइकों हाजिर हुवे, और शहरमें लेजाकर कयागकरवाया. ___व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशाहोताथा और सबलोग निहायतखुश होतेथे, दूसरे मजहबके लोगबाग वास्तेमजहबीबहेसको आतेथे और बहेसकरके फायदा हासिलकरतेथे, दुनियामें धर्मबराबर कोइचीज नही, दौलत-और-मालखजाना-शीशमहेल-सजहुवेकमरे--और-नागबगीचे -बदौलतधर्मके मीलेहै, खूबसुरतऔरत-उमदागेहने-शालशाले-खूब सुरतरुप और-लंबीउमर-पूरवभवमें पुन्यकियाथा उसीकानतीजाहे देखलो ! कइलोग रोटियोके मोहताज और नंगेबदन फिररहेहै, सबब उ. सकायहीहै उनोने पूरवभवमें पुन्यनहीकिया, तुमारेघरजब खुशीकेनः रेबजेगें सबलोग हाजिररहेगे, मगर जबरंजहोगा कोइपासतक-न-आयगा, खास ! औरतभी मुसीबतकेदिनोमे किनारादेकर चलीजातीहै, इसीसे कहाजाताहै लोगमतलबके गरजी, धन-दौलत मिथ्या-औरदुनिया चंद्ररोजके लियहै, जोशख्श ज्ञानियोके फरमानेपर अमलकरेगा-चैनपायगा, मुलाहजाकरलो ! यहबात-सच है-जो-जूठ, ? यह मिट्टीकापुतला-नमालमकिसरोज खाखमे मिलजायगा-जिसको तुम इतनीखातिर-वतवाजेकररहेहो,-जैसेख्वाबमें तरहतरहचीजें देखतेहो-दुनिया उसीका एकनमुनाहै. अगर तुमकों फेजपानाहै-तों धर्मकरो.
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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