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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) -संदेशा कहलाकरपुछलेवेकि-वहांकेराज्यरक्षकोसें दर्याफतकरो हम वहां आनाचाहतेहै, वे-साधु-वहांकेराज्यरक्षकोंसें पुछे-और-अगर उउनकाहुकमहोवे-तो-उनकोलिखे, बेशक ! आओ !! ख्याल करो! कल्पभाष्यवृत्तिमें धर्मकामकलिये साधुलोगोको चीठीलिखनेका हुकमहैया-नही, ?-अगरहै-तो-कुबुलकरनाचाहिये, दुनियादारीकेलिये चीडीलिखना बेशक ! मनाहै, क्योंकि-मुनिलोगोने दुनियादारीकोंछोड दियाहै,-याद रहे ! न्यायरत्नकेलेखहमेशांचलतेही रहेगें, तुमारेलिखनेसे-वे-बंद-न-करेंगें, जोलोग-शास्त्रके फरमानेपर अमलकरनेवालेहै, किसीकेकहनेपर खयाल नहीं रखते, श्रामण्यरहस्य पृष्ट (१९) पर दलीलहै जैनपत्रमें प्रश्नोत्तर न्यायरत्नके देखतेहै-वे-सर्वप्रायः सूत्रविरुद्ध जैनसिद्धांतकों कलंकित करतेहै, लोग-तो-जावनीभाषा-बांचकरप्रसन्नहोतेहै, किंतु सूत्रकामर्म कुछ समझते नही, (जवाब.) मूत्रकामर्म जाननेवालेतो-एक-तुमहीहो, दुसरे सब अजानहै, क्याखूब ! न्यायरत्नके सवालजबाब अगरकोइ शख्श शास्त्रविरुद्ध सबुत करदेगा उसरौज देखलिया जायमा, और उसकों बहादूर समझाजायगा, हालतो कारोबातेंही चलरहीहै, न्यायरत्न जो उर्दूजबान अमलमेंलातेहै सबब उसका यहहैकि-उनकेलेख-आमहिंदमें पढेजातेहै, अगर-वे-अकेलीगुजराती-मालवी-मारवाडी-पंजाबीजबान लिखेतो-आमलोगोकों फायदा कैसे हो, ? (२२) (बयान ज्ञानपढनेकेबारेमें,-) श्रामण्यरहस्य पृष्ट (११) पर मजमूनहै ज्ञानपढनेका बहाना लेकर आचारछोडदेतेहै, बनियेलोग भोलेहै पढेमात्रकों पंडित मानतेहै
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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