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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) (जवाब.) अमर पंचांगीके मुताबिक जवाबदेनेकी ताकात रखतेहो तो-जवाबदो-प्रतिक्रमणमें तीनथुइकरना किसमूत्रकी पंचांगीमें लिखाहै. ? जवावदेना मुश्किलहोगा. जबानीजमाखर्चसे कामनहीचलता, कागजरुप मेंदान सामनेपडाहै, जिसकी मरजीहो-अपनीअकलरूप घोडा दोडालेवे,-शांतिविजयजीके लेख किसजगह शास्त्रविरुद्धथे. ? जाहेर क्यों नहींकिया. ?--अबभी जिसकी ताकातहो-शांतिविजयजी के लेख शास्त्रविरुद्ध सबुत करदेवे, हम उसकों वहादुर समझेगे, पृछाप्रतिवचन पृष्ट (१८) पर दलीलहै जैनपत्रमें निरंतर शांतिविजयजीके लेखोंकी भरमाररहतीहै और आगे यहभी लिखाकि-शांतिविजयजीकी मतिकल्पना क्याक्या उगलतीहै, ? ( जवाब.) शांतिविजयजीकी मतिकल्पना अबतक क्या देखी है ::--अभी तो अव्वलही कामपडाहै, आगे देखतेजाओ ! क्या क्या ! ! मजा दिखलातेहै, ? शांतिविजयजीकी मतिकल्पनाका मजा अगाडी मालूम होगा, देखलो ! पांचकिताबोंके लेखोंका-और-कइइस्तिहारोंका माकुलजवाब एकहीशाथ तुमकों देदिया, शांतिविजयजीके लेखोंकी भरमार जो जैनपत्रमें रहतीहै वहीतो तुमकोंनागवार गुजरती होगी, अगर मारी ताकातहो-तो-तुमभी दूसरा-सप्ताहिकपत्र-निकालो, फिर हमारे तुमारे लेख खूबचलतेरहेगें, पश्नोत्तरपत्रिकामें जाहिरहुवाथाकि-शुद्धसिद्धांतरहस्यमासेकपत्रमें जवाबदियाजायगा, यानी शुद्धसिद्धांतरहस्य नामसे मासिकपत्र निकलेगा, मगर आज उसको निकलते वर्षानुवर्ष-बीतगये, अबतक उसका जन्मभी नहीहुवा, लेखोंकी भरमार कोइ क्या ! रखेगा ! ! लेखोकी भरमार रखनाभी तो अक्कलके ताल्लुकहै,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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