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________________ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) शिष्यकों सख्तसुस्तकहना फरमाया, कौनजैनी इनपाठोंकों इनकारया-जूठ कहसकताहै, ? जब कोइ जैनमुनि-व्याख्यान वाचना शुरु करतेहै तो अवल एसापाठ बोलतेहै, (अनुष्टुप्-छंद.) अज्ञानतिमिरांधानां-ज्ञानांजनशिलाकया, नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः १, ___ अज्ञानतिमिरकरके अंधे बनेहुवेजीवाको ज्ञानरुपी-शिलाकाकरके जिसगरुमहाराजने-अंजनकिया, उनकों नमस्कार हो, देखिये ! इसमेंभी-" अज्ञानतिमिरांधानां." एसा पाठहै.--एक बादशाहने बडा: आलिशान मकान बनवाया और दरवाजा उसका इतना बडा रखा जो करीव (२५) हाथ उंचा होगा, उसके उपरकेभागमें उमदाकारिगिरी और चित्रकारीबिनवाइकि-जिसकों तमाम लोग देखनेकों आतेथे और देखकर खुश होतेथे, जो कोइ मुसाफिर इसशहरमें आताथा उसमहेलको देखनेकेलिये जरूर जाताथा, और उचीनिगाहकरके देखताथा, बादशाहने उसदरवजेके उपरले भागमें एक एसीनसीहतकीबातलिखवा दिइथीकि-जिसकी--तारीफ बेंमीशालथी बडेबडे होंमें यहलिखवादियाथाकि " उंचा क्या देखताहे, ? निचा देख !! दुनियामें आकर तेने क्या नेकी किई, ?-" देखनेवाले इसमिशालकों देखकर शर्मीदे होजातेथे और क
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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