SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ (त्रिस्तुतिपरामर्श.) वक संवत (१६८२) मे हुवे, कहिये ! फिर इनका बनाया हुवा रास किससूत्रकी पंचांगीमें गिनना, ? अगर कहा जाय यहतो एक भाषाकाग्रंथहै तो फिर पंचांगीके सबुतोंमें इसको कोई कैसे मजूर करसकेगा, ? पृछाप्रतिवचनपृष्ट (१०) पर बयानहैकि-व्याख्यानमें बांधना किसी सूत्रके अक्षरोसें नहीं पाई जाती, मालुमहोताहैकि-औपनियुक्तिमें लिखे आदिपदसें व्याख्यानमेंभी बांधनाचाहिये एसा समझकर परंपरामें घालतेहोगें,. (जवाब.) जोबात किसीसूत्रके अक्षरोसें नही पाइजाती उसको कोई किससबुतसें मंजूरकरेगा ? आदिशब्दसें बांधनेका सहारालेनाभी इसलिये ठीकनहीकि औषनियुक्तिमें व्याख्यानकेवख्त आदिशब्दसे मुहपतिबांधो एसा नही फरमाया, सबुतहुवा व्याख्यानवख्तया-तमामदिन मुहपर मुहपति बांधना किसी जैनशास्त्रमें नहि लिखा, परंपरा-रूढी-और-आचरणाका सहारा लेना गलतहै, तमाम जैनोंको तीर्थकरगणधरोंके फरमानेपर अमल करना चाहिये, (१३) ( बीचबयान-प्रश्नपत्रिकाके (२९) में __ सवालका,-) सवाल (२९) में बयानहैकि-जिसचेलेकों गुरुने निकालादिया और-वो-चेला गुरुकी नींदाकरनेलगा, पीछे प्रामांतरके श्रावकोंने उसको मानलिया-वे-श्रावक सम्यक्ती समझे जावे-या-मिथ्यादृष्टि समझे जावे, ? उसकों उनके साधु-न-वर्जे-तो विरोधक-या-आराधक, ?
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy