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________________ ( त्रिस्तुतिपरामर्श . ) (१२) (बयान- मुखवस्त्रिका चर्चाका, ―) पृछाप्रतिवचन पृष्ट ( ४ ) पर पुछनाहो मुहपत्ति कानमें घालना कहां नेकप्रमाण देता हुँ, - मजमून है कि - यदि आपको यह लिखा है - तो - मैं - पंचांगी के अ ( जवाब . ) अनेकप्रमाण तो अलग रहे एकभी कोई बतलावे, प्रश्नोत्तरपत्रिकामे लिखा व्याख्यानके वख्त मुहपत्ति बांधना श्री पूज्योकी चलाईहुई आचरणाहै, और यहां लिखा पंचांगीके अनेक प्रमाणदेताहु, क्या खूब बात है ! जिनके लेखमें पूर्वापर विरोध झलकरहा है, विपाकसूत्रका जो सबुतदिया है उसमे किसजगह लिखाहैकि - गौतमस्वामीने व्याख्यानके बख्त मुंहपर मुँहपत्ति बांधी 2 मृगापुत्रकों जब देखनेगयेथे उसवख्त बदबूके सबब मुंह बांधाथा, व्याख्यानके वख्तकी वहां कोई बात नही थी, दुसरासबुत जो महानिशीथसूत्रका पेश किया है उसमेंभी व्याख्यानके वख्तका लेख नही है, तीसरासबुत जो औघनियुक्तिका दिया उसमेभी व्याख्यानकेवख्त बांधना नही फरमाया, ( पाठ - औघनिर्यक्तिका - यहां देत है, देखलो, ) ( गाथा. ) संपाइम रयरेणु - पमज्जणठावयंति मुहपत्ती, नासंच मुहंच बंधइ - ताए वसहि पमज्जंतो, ( व्याख्या) संपातिमसत्वरक्षणार्थं जल्पद्मिः मुखे दीयते, तथा रजः सचित्तपृथ्वीकायः सत्प्रमार्जनार्थमुखवस्त्रिका ग्रहणं प्रतिपादयंतिपूर्वर्षयः - तथा नाशिकां मुखंच - बध्नाति तथा मुखवस्त्रिकया वसतिं च प्रमार्जयेत् येन मुखादौ - न - प्रविशतीति,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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