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________________ (त्रीस्तुतिपरामर्श.) शैरवगेरा जानवरोंका-खौफहो, या सफरकरनेकी जल्दीहो-जिसमुनिकेपांव बहुतमुलाइमहो- खुलेपांव चलनेकी ताकात-न-हो उसहालतमें उक्त चमडेके तलिये पांवकों बांधकर मुनि चले,-जिसमुनिके पांव ठंडके सबब फटजातेहो-तकलीफ होतीहो-अतिसुकमाल मुनिकों ठंडमें चलना-न-बनसकताहो उसहालतमें मुनि उपाहन पहने, तीसरे भेदमें (वाधरी.) यानी टुटे हुवे उपानहकों सीडनेकेलिये चमडेका टुकडाभी मुनिरखे, चतुर्थभेदमें (कोसग,) यानी-किसीमुनिके नख -या-पांव फट गयेहो-उनकों बांधनेके लिये एकतरहकाचर्ममयउपकरण रखे, पांचवेभेदमें अग्निका खौफ होतो-अपने बचावके लियेया-सचित्त पृथवीकायादिकी रक्षाकेलिये-या-गिलीजमीनपर बिछानेके लिये-मुनि-उक्तप्रकारका चमडारखे, एसा प्रवचनसारोद्धारका पाठहै जिनकों शकहौ उक्त ग्रंथ देखलेवे, देखिये ! इसपाठमें मुनिकों चमडेका उपकरण और चमडा रखना कहा-अगर कोई सवाल करे मुनिकों चमडा रखना हमने कभी-नही सुना तो जवावमें मालूमहो-प्रकरणरत्नाकरके तीसरे भागमें जो प्रवचनसारोद्धारग्रंथ छपाहै उसके पृष्ट (२६३) पर गाथा (६८२) देखो, थोडे पढे हुवे चाहे सो समजे मगर जानकारलोग सचबातकों इनकार नहीं कर सकते, सबुतहुवा उपर दिखलायेहुवे सबबोंसें जैनमुनिचमडेके उपाहन पहने-कोई हर्ज नही, बतलाइये ! मौजे पहनना सबुत हुवा-या-नही, कमवारीशमें गोचरीजानेके बारेमें कल्पसूत्रका पाठहैकि-अल्पदृष्टिमें स्थविरकल्पी मुनि-कंबल ओढकर गोचरीजाय, ( देखो ! पाठ कल्पसूत्रका,).. कप्पइ-से-अप्पुठीकायंसि,
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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