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________________ (श्रीस्तुतिपरामर्श.) सरस्वतीके कोशकी- बडी अपूरव बात, खर्चेसें नित बढतहै-बिन खर्चे घट जात, २ इस किताबमें तीनस्तुतिका परामर्श-मुखवत्रिकाकी चर्चाप्रश्नोत्तरपत्रिका-पृछाप्रतिवचन-श्रामण्यरहस्य-प्रश्नपत्रिका-और पयूषणपत्रिका वगेराका जवाब दर्जहै, एक किताब प्रश्नोत्तरपत्रिकापृष्ट (११) की-दुसरी पृछाप्रतिवचन पृष्ट (२७)की-तीसरी श्रामण्यरहस्य किताब पृष्ट .(२५)की-प्रश्नपत्रिका और पर्दूषणपत्रिका-जो इन दिनोंमें छपकर जाहिर हुइहै इनका माकुल जवाब इसमेदिया जायगा, खयाल करके सुनो ! मालूम होजायगाकि-किसकदर उमदा जवाब दियाहै, (१) (इनसाफ,) लाजिमहै इन्सानकों किसीकिताबकी शुरुआतकरे इन्साफकों न भूले, और शास्त्रस बुतसें पेंश आवे, बुरे अल्फाजलिखना अकलमंदोंका काम नही, बुरे अल्फाज लिखनेसे शास्त्रार्थका मजा नही रहता, दूसरोंकी इज्जतपर चौट करना अपनी इज्जत घटानाहै. भले आदमी हमेशां भलाइकी बातें किया करतेहै, मुनासिबहै आम शख्शोंजब किसी किताबकों लिखने बैठे. बुरे अल्फाज पासतक-न-आनेदेवे, दुष्मनकोंभी इज्जतसे देखे, और खुशमिजाजसें लेख लिखते चले जाय, अछे लोगोंका फरमानाहैकि-सभ्यता रखो, खुशामद छोडो, अत्युक्ति मतकरो, सच बातसें जितना हठोगे उतना तरक्कीसें हठोगे, अमर कोई चाहे-मैं-आस्मानसें चांद सूर्यकों नीचे बुलवा हुँ-तोयह नीरालडकपनहोगा. चांदसूर्य हर्गिज ! नीचे न आयगें, इसीतरह इज्जतदारोंकी इज्जत किसीके लिखनेसें कम-न-होगी, आमलोग
SR No.032003
Book TitleTristuti Paramarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantivijay
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1907
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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