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________________ गुरु-शिष्य ७९ प्रश्नकर्ता : तो गुरु बनाते समय शिष्य में कैसे गुण होने चाहिए? दादाश्री : अभी के शिष्य में अच्छे गुण कहाँ से होंगे! वह भी इस कलियुग में? बाक़ी, शिष्य तो किसे कहा जाता है कि उसके गुरु पागलपन करें तो भी श्रद्धा उठे नहीं, वह शिष्य कहलाता है। गुरु पागलपन करे तो भी अपनी श्रद्धा नहीं उठे, शिष्य के रूप में वह हमारा गुण कहलाता है। ऐसा होगा आपसे? प्रश्नकर्ता : अभी तक वैसा अवसर उपस्थित नहीं हुआ। दादाश्री : वैसा हो तो क्या करोगे? हाँ, गुरु पर श्रद्धा रखो तो ऐसी रखो, कि जो श्रद्धा रखने के बाद उठानी नहीं पड़े। नहीं तो श्रद्धा रखना ही नहीं शुरू से। वह क्या बुरा? __ कल तक उन्हें लोग मानते थे, और फिर गुरु पागलपन करें तब गालियाँ देने लगे। ऐसी-ऐसी गालियाँ देने लगे। अरे, तब फिर उन्हें माना किसलिए था तूने? यदि माना तो गालियाँ देना बंद कर। अभी तक पानी पिला-पिलाकर बड़ा किया, उसी पौधे को तूने काट दिया? तेरी क्या दशा होगी? गुरु का जो होना होगा वह होगा, पर तेरी क्या दशा होगी? प्रश्नकर्ता : हमने मन में गुरु के लिए कोई ऊँची कल्पना की होती है न, वह खंडित हो जाती है तब ऐसा होता है? दादाश्री : या तो गुरु बनाना नहीं, और बनाओ तो गुरु पागलपन करे तो भी उसमें आपकी दृष्टि नहीं बिगड़नी चाहिए। नहीं देखते भूल कभी गुरु की ये तो पाँच दिनों में ही गुरु की भूल निकालते हैं। आप ऐसा क्यों करते हैं?' अरे, उनकी भूल निकालता है? गुरु की भूल निकालते हैं ये लोग? प्रश्नकर्ता : गुरु की कभी भी भूल नहीं निकालनी चाहिए! दादाश्री : हाँ, पर वह भूल निकाले बिना रहता नहीं है न! ये तो कलियुग
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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