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________________ गुरु-शिष्य उनसे कहें, ‘हे शुद्धत्मा भगवान, आप मुझे मार्गदर्शन दीजिए', तो वे देंगे। किसे ज़रूरत नहीं है गुरु की ? प्रश्नकर्ता : आपके पास यथार्थ समकित हो जाए तो फिर गुरु की ज़रूरत नहीं है न? ७७ दादाश्री : फिर गुरु नहीं चाहिए। गुरु की किसे ज़रूरत नहीं है? कि मेरे जैसे ज्ञानीपुरुष को गुरु की ज़रूरत नहीं है । जिन्हें खुद के सर्वस्व दोष दिखते हैं ! प्रश्नकर्ता : आपने ज्ञान प्रदान किया तो उसमें सतत जागृत रहने के लिए गुरु का सत्संग अथवा गुरु का सामिप्य ज़रूरी है या नहीं? दादाश्री : हाँ, उस सबकी ज़रूरत है न ! पाँच आज्ञा पालने की ज़रूरत है, सभी की ज़रूरत है ! प्रश्नकर्ता : अर्थात् गुरु की ज़रूरत है ही न? I दादाश्री : गुरु की ज़रूरत नहीं है । यह साध्य होने के बाद गुरु कौन हैं फिर? साधक के गुरु होते हैं । ये मुझे साठ हज़ार लोग मिले हैं। उन्हें गुरु बनाने की ज़रूरत नहीं है I प्रश्नकर्ता : उन्हें सत्संग की ज़रूरत है क्या? दादाश्री : हाँ, सत्संग की ज़रूरत है । फिर, पाँच आज्ञा पालने की ज़रूरत है। प्रश्नकर्ता : यहाँ रोज़ आएँ, आप जब हों तब, उसकी ज़रूरत है न? दादाश्री : मैं यहाँ पर होऊँ तब लाभ उठाएँ। रोज़ नहीं आएँ और महीने में एक बार आए तो भी हर्ज नहीं है। प्रश्नकर्ता : आपकी गैरहाज़िरी में उस प्रकार की जागृति की ज़रूरत है या नहीं? सत्संग की ज़रूरत है या नहीं?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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