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________________ गुरु-शिष्य भी नहीं है। हटाने जाएँ तो आप जिनके आधार से चल रहे थे, उनके आप विरोधी हो गए कहलाएँगे। कुछ विरोधी होने की ज़रूरत नहीं है। शिष्य की दृष्टि से प्रश्नकर्ता : तो किस प्रकार के गुरु की शरण में गए हों तो आत्म उन्नति संभव है? दादाश्री : गुरु अर्थात् कभी भी, पूरी ज़िन्दगीभर अपना मन उनके लिए बिगड़े नहीं, ऐसे होने चाहिए। जब देखो तब मन में उल्लास ही रहा करे। वैसे गुरु यदि मिलें तो, उनकी शरण में जाना। प्रश्नकर्ता : हमें खराब विचार आएँ और तुरंत ही हम भावना बदल दें, पर उसमें गुरुकृपा हमें कितनी हद तक सहायक होती है? दादाश्री : गुरुकृपा से तो बहुत मदद मिलती है। परंतु अपनी वैसी भावना, वैसा प्रेम चाहिए। जिनके बिना हमें अच्छा नहीं लगे, चैन नहीं पडे, वैसा भाव चाहिए। विरह लगना चाहिए। ___ गुरु का ज्ञान जितना कच्चा होगा, उतना समय उस शिष्य को अधिक लगेगा। एक्ज़ेक्ट ज्ञान तुरंत ही फल दे देता है और भले ही मुझे केवलज्ञान होते-होते रुक गया है, पर भेद ज्ञान तो मेरे पास आ गया है, और वह तुरंत फल दे ऐसा है। गुरु का प्रेम - राजीपा प्रश्नकर्ता : गुरु प्रसन्न हुए ऐसा कब माना जाएगा? दादाश्री : वह तो हम संपूर्ण आज्ञा में रहे तो प्रसन्न होंगे। वे प्रसन्न हो जाएँ तो हमें पता चलेगा। रात-दिन हमें प्रेम में ही रखेंगे। प्रश्नकर्ता : गुरु एक बार प्रसन्न हो जाएँ यानी ऐसे कोई खास प्रकार का वर्तन देखकर, फिर हमारे वर्तन में शायद कभी कमी आए तो वापिस नाराज़ भी हो सकते हैं न?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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