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________________ गुरु-शिष्य प्रश्नकर्ता : गुरु ने ऐसा किया तभी तो उसे फेंक आना पड़ा न? गुरु निमित्त बने न उसमें? वे दोषित ठहरे न? दादाश्री : गुरु चाहे सो करें, पर आपसे भूल नहीं होनी चाहिए। आपकी भूल के कर्म आपको ही लगेंगे, उनकी भूल के कर्म उन्हें लगेंगे। आप मेरा अपमान कर जाओ, गालियाँ दो, तो मैं डॉ--करूँ तो मुझे कर्म लगेगा। मुझे तो ऐसा करने की ज़रूरत ही कहाँ है? आप तो कर्म बाँधोगे। आप श्रीमंत हो, शक्तिवाले हो, तो बाँधो। हममें वैसी शक्ति भी नहीं और हमारी श्रीमंताई भी नहीं है वैसी! वैसी शक्ति हो तो कर्म बाँधेगे न! इसलिए हमसे ऐसा नहीं कहा जा सकता। यह कुत्ता काटे तो क्या हम भी काटें? वह तो काटेगा ही! प्रश्नकर्ता : ऐसे गुरु की फोटो नदी में डाल दें तो पाप किस तरह लगेगा? दादाश्री : ऐसा नहीं बोलते, हमें ऐसा नहीं बोलना चाहिए। उन गुरु में भगवान रहे हुए हैं। वे गुरु भले खराब हैं, परंतु भगवान रहे हुए हैं न! हमें उन्हें निर्दोष ही देखना चाहिए। अपने पूर्व के कोई पाप होंगे इसलिए फँसे, और ऐसे गुरु मिल आए। नहीं तो मिलते ही नहीं न! पिछले जन्म का ऋणानुबंध, इसलिए ये मिलते हैं न! नहीं तो कहाँ से मिलें? दूसरे लोगों को नहीं मिले और हमारे हिस्से में ही कहाँ से आए? तब फिर मैंने उसे विधि कर दी और कहा कि, 'गुरु के नाम पर बुरा मत बोलना, उनके बारे में बुरा मत सोचना, गुरु के नाम पर बैर मत रखना।' उसे मन से प्रतिक्रमण करवाए, सब सिखाया। उस व्यक्ति को सारा रास्ता कर दिया, और नदी में फोटो डाल आया, उसकी किस तरह विधि करनी, वह मैंने उसे बताया। फिर उसे ठीक हो गया। फिर बारह महीनों तक नहीं गया, इसलिए गुरु समझ गए कि किसीने इसे हमसे अलग कर दिया है। तब बारह महीनों के बाद गुरु ने पत्र लिखा कि, 'आप आओ। आपको किसी भी तरह से परेशान नहीं करूँगा।' वह जो आटा खाने की जो आदत है, वह उसे मारती है, लालच! पर अब वह नहीं जाता। क्योंकि यह मछली एक बार पकड़ी जाने के बाद छूट जाए, फिर वापिस
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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