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________________ गुरु-शिष्य मिलने, व्यापारी नहीं हों वैसे गुरु का मिलना बहुत बड़ा पुण्य कहलाता है । नहीं तो गुरु क्या करते हैं? शिष्य के पास से उसकी कमज़ोरियाँ जान लेते हैं और फिर कमज़ोरियों की लगाम पकड़ते हैं और परेशान कर देते हैं लोगों को! कमज़ोरी तो वह बेचारा गुरु के सामने ज़ाहिर न करे तो कहाँ करेगा? ६५ प्रश्नकर्ता : अभी कुछ गुरु हैं, जो सिर्फ नाम के गुरु हैं, पर वे ऐसे तो वास्तव में लोगों का शोषण ही कर रहे होते हैं। दादाश्री : और एकाध - दो गुरु सच्चे हों, सीधे हों, तब उनमें योग्यता नहीं होती। प्रपंची गुरु तो बहुत होशियार होते हैं और तरह-तरह के ऐसे भेष बनाते हैं। प्रश्नकर्ता : कोई भी मनुष्य मुक्त होने के लिए गुरु का आश्रय लेता है, परंतु फिर उस गुरु की पकड़ में से मुक्त नहीं हो सकता। इसलिए गुरु से भी मुक्त होने की ज़रूरत है, ऐसा नहीं लगता? दादाश्री : हाँ, मुझे सूरत शहर में एक सेठ मिले थे। वे मुझे कहने लगे, 'साहब, मुझे बचाइए!' मैंने कहा, 'क्या है? तुझे कोई नुकसान हो गया है?' तब उन्होंने कहा, ‘मेरे गुरु ने ऐसा कहा है कि 'मैं तुझे मटियामेट कर दूँगा'। यदि वे मुझे वैसा कर देंगे तो मैं क्या करूँगा? मेरा क्या होगा अब ?' फिर मैंने पूछा, 'तेरा उनके साथ ऐसा तो क्या व्यवहार हुआ है कि इतना भारी शब्द कहा तुझे? कुछ लेना-देना है उनके साथ ? कोई लेना-देना हो, तो वैसा बोलेगा न?' तब उन्होंने कहा, ‘मेरे गुरु कहते हैं कि, 'पचास हज़ार रुपये भेज दे नहीं तो मैं तुझे मटियामेट कर दूँगा।' ‘अरे, पैसों का व्यापार किया तूने उसके साथ? तूने उधार लिया था?' तब उन्होंने कहा, 'नहीं, उधार नहीं । पर वे जब- जब भी कहें कि पच्चीस हज़ार दे जा, नहीं तो तेरा बिगड़ेगा वह तू जाने, इसलिए मैं डर के मारे उन्हें रुपये दे आता हूँ। इस तरह आज तक सवा लाख रुपये दे चुका हूँ । अब और पचास हज़ार रुपये मेरे पास नहीं हैं, इसलिए मैं कहाँ से लाकर दूँ? इसलिए अब उन्होंने कहलवाया है कि तुझे पूरा बरबाद कर दूँगा । ' तब मैंने कहा, ‘भाई, चल, तुझे हम रक्षण देंगे। तू बरबाद नहीं होगा।
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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