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________________ गुरु-शिष्य ६३ दादा ने लुटाया है ज्ञान गहन मैं तो क्या कहता हूँ कि मेरे साथ चलो सभी । तब कहते हैं, 'नहीं, आप एक कदम आगे।' तब मैं कहता हूँ कि एक कदम आगे, पर मेरे साथ चलो। मैं आपको शिष्य नहीं बनाना चाहता हूँ। मैं आपको भगवान बनाना चाहता हूँ। आप हो ही भगवान, आपका वह पद आपको देना चाहता हूँ। मैं कहता हूँ कि तू मेरे जैसा बन जा बिल्कुल! तू तेजवान हो जा। मुझे जैसी इच्छा है, वैसा तू हो जा न ! मैंने तो अपने पास कुछ रखा नहीं है, सबकुछ आपको दे दिया है। मैंने कुछ भी जेब में नहीं रख छोड़ा है। जो था वह सबकुछ ही दे दिया है, सर्वस्व दे दिया है! पूर्ण दशा का दिया हुआ है सारा । हमें तो आपके पास से कुछ भी चाहिए नहीं। हम तो देने आए हैं, सारा हमारा ज्ञान देने आए हैं । इसलिए ही यह सब ओपन किया है । इसलिए लिखा है न, 'दादा ही भोले हैं, लुटा दिया है ज्ञान गहन ।' ज्ञान कोई लुटाता ही नहीं न ! अरे, इसे लुटाने दो न ! तो लोगों को शांति हो, ठंडक हो जाए। यहाँ मेरे पास रखकर मैं क्या करूँ? उसे दबाकर सो जाऊँ? और नियम ऐसा है कि इस दुनिया में हर एक चीज़ जो दी जाती है, वह कम होती है, और सिर्फ ज्ञान ही देने से बढ़ता है ! वैसा स्वभाव है । सिर्फ ज्ञान ही ! दूसरा कुछ भी नहीं । दूसरा सबकुछ तो घटता है । मुझे एक व्यक्ति कहता है कि, ‘आप जितना जानते हैं उतना क्यों कह देते हैं? थोड़ा कुछ डिब्बी में नहीं रखते?' मैंने कहा, 'अरे, देने से तो बढ़ता है ! मेरा बढ़ता है और उसका भी बढ़ता जाता है, तो क्या नुकसान होता है मेरा ? मुझे ज्ञान डिब्बी में रखकर गुरु नहीं बन बैठना है कि यह मेरे पैर दबाता रहे । वह तो फिर अंग्रेज़ों के जैसा हाल हुआ, कि उन्होंने सभी ज्ञान डिब्बी में रखे थे। 'Know-How' के भी उन लोगों ने पैसे लिए। उससे ही तो यह सारा ज्ञान पानी में डूब जाएगा । अपने लोग देते रहते थे, खुले हाथों से देते ही रहते थे । आयुर्वेद का ज्ञान देते थे, फिर दूसरा ज्योतिषविद्या का ज्ञान देते थे, अध्यात्मज्ञान देते थे, सब खुले हाथों से देते थे।
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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