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________________ गुरु-शिष्य प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ यह हुआ कि शिष्य को कुछ भी मेहनत नहीं करनी है, मेहनत गुरु को ही करनी है सारी? दादाश्री : हाँ, गुरु को ही करनी है। आपको यदि करना हो तो आपको ऐसा कहना चाहिए, 'तब साहब, आपको क्या करना है? कहिए। यदि आपको कुछ नहीं करना है और यह हुकम ही करना हो, तो इससे तो मैं अपने घर पर मेरी वाइफ का हुकम मागूंगा। वाइफ भी पुस्तक में देखकर कहेगी! आप भी पुस्तक में देखकर, शास्त्र देखकर कहते है, तब वह भी पुस्तक देखकर कहेगी। 'ऐसा करो', कहने से नहीं चलेगा। आप कुछ करने लगिए। मुझसे नहीं हो, वह आप कीजिए, और आपसे नहीं हो वह हम करेंगे। ऐसे बँटवारा कर लीजिए।' तब उन गुरुओं ने क्या कहा? 'हम किसलिए करें?' तब हम कहें, 'तब आपके पास शुक्रवार बदलेगा नहीं और शनिवार मेरा आएगा नहीं।' ऐसा कह देना चाहिए न? प्रश्नकर्ता : पर सामनेवाला व्यक्ति ठीक नहीं हो तो क्या? दादाश्री : सामनेवाले व्यक्ति को देखने की ज़रूरत नहीं है। गुरु अच्छे होने चाहिए। व्यक्ति तो है ही वैसा, समर्थ नहीं है बेचारा। वह तो ऐसा ही कहता है न कि, 'साहब, मैं समर्थ नहीं हूँ, इसीलिए आपके पास आया हूँ। मुझे 'करना' होता होगा?' तब वे कहें, 'नहीं, तुझे करना पड़ेगा।' तो वे गुरु ही नहीं हैं। यदि मुझे करना पड़ता तो आपकी शरण में किसलिए आऊँ? आपके जैसे समर्थ को किसलिए ढूंढ निकालता? इतना ज़रा आप सोचिए तो सही! आप समर्थ हैं और मैं तो कमज़ोर ही हूँ। मुझसे होता ही नहीं, इसलिए तो आपकी शरण में आया, और मुझमें यदि कर्त्तापन रहनेवाला हो तो आप कैसे हैं? कमज़ोर ही कहलाएँगे न! आप समर्थ कहलाएँगे ही किस तरह? क्योंकि समर्थ तो सबकुछ कर सकते हैं। यह तो गुरु में बरकत है नहीं, इसलिए ही सामनेवाले व्यक्ति को बोझा लगता है। गुरुओं में बरकत नहीं है, तभी सामनेवाले व्यक्ति का दोष निकालते हैं। पति में बरकत नहीं हो तो पत्नी का दोष निकालता है। कमज़ोर पति, पत्नी पर शूरवीरता दिखाता है, ऐसी कहावत चलती है संसार में। उसी तरह
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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