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________________ गुरु-शिष्य ४७ गुरुमंत्र, नहीं देता फिसलने प्रश्नकर्ता : हर एक संप्रदाय में हर एक के गुरु ने गुरुमंत्र दिया होता है, वह क्या है? दादाश्री : सभी गिर नहीं पड़ें, फिसल नहीं जाएँ, उसके लिए किया है। गुरुमंत्र यदि जतन से सँभालकर रखे तो वे फिसल नहीं पड़ेंगे न। परंतु उससे मोक्ष का कुछ भी प्राप्त नहीं करते वे । प्रश्नकर्ता : गुरु का दिया हुआ नाम स्मरण हो, तो वह, साधारण मनुष्य के दिए हुए से इसकी शक्ति अधिक होती है या नहीं ? दादाश्री : वह दिया हुआ हो तो अच्छा फल देता है । वह तो जैसेजैसे गुरु | वह गुरु पर आधारित है। गुरु का ध्यान करना हितकारी प्रश्नकर्ता : कुछ गुरु उनका खुद का ध्यान करने को कहते हैं, वह योग्य है या नहीं? दादाश्री : ऐसा है न, ध्यान तो इसलिए करना है कि गुरु के सुख के लिए नहीं, हमें एकाग्रता रहे और शांति रहे उसके लिए ध्यान करना है। परंतु गुरु कैसे होने चाहिए? अपना ध्यान टिके वैसे होने चाहिए। प्रश्नकर्ता: परंतु ध्यान सद्गुरु का करना योग्य है या किसी भगवान के अन्य स्वरूप का? दादाश्री : भगवान के ध्यान की खबर ही नहीं, वहाँ क्या करोगे? उसके बजाय तो गुरु का ध्यान करना । उनका मुँह दिखेगा तो सही ! इसमें सद्गुरु का ध्यान करना अच्छा है । क्योंकि भगवान तो दिखते नहीं है। भगवान तो, मैं दिखाऊँ उसके बाद भगवान का ध्यान होगा । तब तक जिन्हें सद्गुरु माना हो, उनका ही ध्यान करना । मैं भगवान दिखा दूँ, उसके बाद आपको करना नहीं पड़ेगा। जब तक करना है, तब तक भटकना है। कुछ भी करना पड़े, ध्यान भी करना पड़े, तब तक भटकन है। ध्यान सहज होता है। सहज मतलब
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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