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________________ ३२ गुरु-शिष्य प्रश्नकर्ता : भारी। दादाश्री : तो भारी मतलब अवश्य डूबेगा। वह डूबे तो डूबे, लेकिन उस पर बैठे हों, उन सभी की जलसमाधि हुई है। इस जगत् में यही हो रहा है। फिर मुझे गुरु कहाँ बनाते हो! यानी गुरु से हमें पूछना चाहिए कि 'हे गुरु महाराज, आपके पास डूबें नहीं वैसी गुरुकिल्ली है? आप भारी हैं इसलिए डूबे बगैर रहेंगे नहीं और हमें भी डुबोएँगे। तो आपके पास गुरुकिल्ली है? आप डूबें वैसे नहीं हैं न? तब मैं आपके साथ बैतूं।' वे 'हाँ' कहें तो बैठ जाना। प्रश्नकर्ता : कोई ऐसा तो कहेगा ही नहीं न, कि मैं डूबूं ऐसा हूँ? दादाश्री : हाँ, लेकिन हम कहेंगे न, कि 'आपमें साहब, अक़्ल ज़रा कम है।' इतना कहें तो तुरंत पता चल जाएगा कि ये डूबें वैसे हैं या नहीं! नहीं तो बिना गुरु किल्ली के सारे गुरु डूबे हैं। वे डूब गए, परंतु सारे शिष्यों को भी डुबोया। फिर कहाँ जाएँगे, उसका ठिकाना नहीं। गुरु के पास गुरुकिल्ली हो तो वह नहीं डूबेगा। क्योंकि पहले के समय में गुरुओं के गुरु होते थे न, वे परंपरागत पूची देते जाते थे। अपने शिष्यों से क्या कहते थे? तुम गुरु बनना, लेकिन यह 'गुरुकिल्ली' पास में रखना, तो डूबोगे नहीं और डुबोओगे नहीं। तब आज के गुरुओं से पूछता हूँ कि, 'किल्ली है कोई?' 'कौनसी किल्ली है वह?' और ये तो भटक मरे! ऊपर मत बैठने देना किसीको। यह गुरुकिल्ली तो भूल गए। गुरुकिल्ली का ही ठिकाना नहीं है। यह कलियुग है इसलिए डूबते हैं, सत्युग में नहीं डूबते थे। प्रश्नकर्ता : लेकिन गुरु तो तारणहार होते हैं, वे डूबोते नहीं। दादाश्री : नहीं, लेकिन उनके पास गुरुकिल्ली हो तो वह तर जाएँगे और दूसरों को तारेंगे। यदि गुरुकिल्ली नहीं होगी न, तो तू दुःखी हो जाएगा। लोग तो वाह-वाह करेंगे ही न, लेकिन फिर उस गुरु का दिमाग़ फट जाता है। दिमाग़ की नस फट जाएगी फिर। मेरी क्या वाह-वाही नहीं करते लोग? यानी गुरुकिल्ली हो तो काम का है। गुरुकिल्ली मतलब ऐसा कुछ खुद के पास साधन हो कि जो किल्ली डूबने ही नहीं दे। वह किल्ली नाम की समझ
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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