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________________ गुरु-शिष्य सत् साधन, समाए 'ज्ञानी' में इसलिए कहा है कि सत् साधन चाहिए। सत् साधन मतलब क्या? सत्देव, सत्धर्म और सद्गुरु! वास्तव में तो शास्त्र भी सत् साधन नहीं हैं, मूर्ति भी सत् साधन नहीं है। सिर्फ ज्ञानीपुरुष ही सत् साधन हैं। उनमें सब आ गया। सत्देव, सद्गुरु और सत्धर्म वे तीनों एक साथ हों, उनका नाम ज्ञानीपुरुष ! जब विधि करते हैं तब वे सत्देव हैं, बोलें तब सद्गुरु हैं और सुनें तब सत्धर्म है, तीनों वही का वही है! एक का ही आराधन करना, दूसरा झंझट ही नहीं। नहीं तो तीन का आराधन करना पड़े। यह तो एक में ही सब आ गया। प्रश्नकर्ता : जैनिज़म में गुरुभाव जैसा तो कुछ है ही नहीं। दादाश्री : नहीं, आप कहते हो वैसा नहीं है। बाक़ी देव, गुरु और धर्म पर ही तो इसका स्थापन है। सत्देव, सद्गुरु और सत्धर्म पर तो उसका सारा आधार है। भगवान महावीर ने, चौबीस तीर्थंकरों ने क्या कहा है? कि गुरु के बगैर तो इस दुनिया में चलेगा नहीं। इसलिए सत्देव, सद्गुरु और सत्धर्म ये तीनों साथ में होंगे तो मोक्ष होगा। ऐसा सुनने में आया है थोड़ा बहुत? सत्धर्म मतलब भगवान के कहे हुए शास्त्र-आगम, वे सत्धर्म है। सत्धर्म तो है, भगवान के कहे हुए शास्त्र हैं, लेकिन गुरु के बिना समझाए कौन? और सद्गुरु तो, अपने यहाँ सब सद्गुरु होते हैं, वे भी अभी सद्गुरु रहे नहीं हैं। क्योंकि उन्हें आत्मज्ञान नहीं है इसलिए। वर्ना, सद्गुरु तो चाहिए ही। आपके वहाँ वे लेने आते हैं, तब आपको भोजन देना है। औ उसके बदले में आपको वहाँ पढ़ने जाना है। ऐसी भगवान ने व्यवस्था की है। हर एक व्यक्ति को, अस्सी वर्ष के मनुष्य को भी सद्गुरु चाहिए। सत्देव अर्थात् क्या? कि वीतराग भगवान। अब वे हाज़िर नहीं हों, तो उनकी मूर्ति रखते हैं। लेकिन सद्गुरु तो प्रत्यक्ष चाहिए। उनकी मूर्ति नहीं चलेगी। मन से माना हुआ नहीं चलता प्रश्नकर्ता : गुरु बनाने चाहिए वह बात सच है, लेकिन हम मन से किसीको गुरु मान लें तो चलेगा?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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