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________________ गुरु-शिष्य तो लोग तो इस सत्य को ढंकने फिरते हैं और यह सत्य कोई हिम्मत से बोल नहीं सकता। 'यह गलत है' ऐसा लगा या नहीं लगा? प्रश्नकर्ता : हाँ, दादा। दादाश्री : गलत का ज्ञान होना चाहिए। एक भाई ने मुझे कहा कि, 'यह गलत है' ऐसा मुझे ज्ञान हो गया। मुझे तो इतना ही चाहिए था। क्योंकि यह तो अनिश्चित रहता है, शंका रहती है कि यह भी थोड़ा सच्चा है और वह भी थोड़ा सच्चा है। तब तक तो इसमें कोई स्वाद नहीं निकालोगे। 'यह गलत है' ऐसा ज्ञान से लगना चाहिए, उसके बाद अच्छा लगेगा! ___ ऐसा है न, यह कोई बोलता नहीं और सभी ने मान लिया (मन मना लिया)। मेरे जैसे 'ज्ञानीपुरुष' स्पष्ट बोल सकते हैं और जैसा है वैसा हमसे बोला जा सकता है। हैं 'निमित्त', फिर भी 'सर्वस्व' ही पूछो सब, सब पूछा जा सकता है। हर एक प्रश्न पूछा जा सकता है। फिर यह संयोग मिलेगा नहीं। इसलिए सबकुछ पूछ लो। प्रश्न अच्छे हैं और यह सब ज्ञान प्रकट होगा तो लोग जानेंगे न! हम ठेठ तक की बात करेंगे। आप पूछो तो हम जवाब देंगे। प्रश्नकर्ता : ऐसा भी कहा जाता है कि ज्ञान गुरु से भी नहीं होता और गुरु के बिना भी नहीं होता। वह समझाइए। दादाश्री : बात तो सच्ची है न! यदि कभी गुरु ऐसा कहें कि, 'मेरे कारण हुआ' तो गलत बात है और शिष्य कहे कि, 'गुरु के बिना हुआ' तो वह बात भी गलत है। हमने क्या कहा है? कि यह आपका ही आपको देते हैं। हमारा कुछ भी देते ही नहीं। प्रश्नकर्ता : इसमें आप निमित्त तो हैं ही न? दादाश्री : हाँ, निमित्त तो हैं न! हम तो खुद ही आपसे कहते हैं न, कि हम तो निमित्त हैं। मात्र निमित्त! परंतु यदि आप निमित्त मानोगे तो आपका
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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