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________________ गुरु-शिष्य १२९ आप मुझे शब्दों से राज़ी करो या कपटजाल से राज़ी करो। लेकिन मैं कपटजाल से भी राजी हो जाऊँ, वैसा नहीं हूँ। हमें भी छलनेवाले आते हैं, ऐसे मीठी-मीठी बातें करनेवाले आते हैं, परंतु मैं धोखा नहीं खाता! हमारे पास लाखों लोग आते होंगे। वे मीठी-मीठी बातें करते हैं, सब करते हैं, लेकिन राम तेरी माया...! उसे यहाँ मीठा मिलता ही नहीं न! वे जानते हैं कि दादा के पास ऐसा कुछ भी नहीं चलेगा इसलिए वापिस जाता है। ऐसे 'गुरु' देख लिए हैं, सभी ठगनेवाले 'गुरु' देख लिए हैं। वैसे गुरु आएँ तो मैं पहचान लेता हूँ कि ये आए हैं। धोखा देनेवाले को 'गुरु' ही कहा जाएगा न! नहीं तो दूसरा कौन है वह? 'धोखा देनेवाला' शब्द कहा ही नहीं जा सकता, 'गुरु' ही कहा जाएगा न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : ऐसे बहुत सारे मिले हैं। उनको मुँह पर कुछ नहीं कहता हूँ। वे अपने आप ही तंग आ जाते हैं कि, 'यहाँ मैं कहने आया हूँ, परंतु कुछ सुनते ही नहीं। इतना सब उन्हें देने आया हूँ।' लेकिन फिर वह ऊब जाता है कि 'इन दादा के पास कुछ दाल गलनेवाली नहीं है, यह खिड़की भविष्य में खुलेगी नहीं।' अरे, मुझे कुछ नहीं चाहिए, तू किसलिए खिड़की खोलने आया है? जिसे चाहिए वहाँ जा न, लालची हो वहाँ जा। यहाँ तो कोई लालच ही नहीं है न! चाहे जैसे आएँ फिर भी वापिस निकाल दूं कि 'भाई, यहाँ पर नहीं!' लोग तो कहने आएँगे कि, 'आइए चाचा, आपके बगैर तो मुझे अच्छा नहीं लगता। चाचा, आप कहो उतना काम कर आऊँगा आपका, कहो उतना सभी। आपके पैर दबाऊँगा।' अरे यह तो मीठी-मीठी बातें करता है. वहाँ बहरे हो जाना। ___ अर्थात् सब सरल हो गया है, तो अब अपना काम पूरा कर लो। इतना ही मैं कहना चाहता हूँ। बहुत सरल नहीं आएगा, इतना अधिक सरल नहीं आएगा, ऐसा चान्स बार-बार नहीं आएगा। यह चान्स उच्च है न, इसलिए यह दूसरी मीठी-मीठी बातें कम होने दो न! इन मीठी बातों में मज़ा नहीं है। मीठीमीठी बातें करनेवाले लोग तो मिलेंगे, परंतु उसमें आपका हित नहीं है। इसलिए
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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