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________________ ११६ गुरु-शिष्य क्यों हुई? उल्टे कामना हो उसका भी नाश हो जाना चाहिए! ये तो कामनाएँ उत्पन्न होती हैं। आपको ऐसा समझ में आता है कि लोगों को भीतर पूजे जाने की कामनाएँ खड़ी हुई है, वैसा? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : फिर भीतर स्पर्धा चलती है। लोग किसी और को अधिक पूजते हों तो उसे अच्छा नहीं लगता फिर। मतलब कि पूजा जाना वही मोक्ष(!) हो ऐसा मान लिया है इन लोगों ने। यह तो बहुत बड़ा जोखिम है। बाक़ी, जिसका इस जगत् में किसीके साथ झगड़ा नहीं हो, उसे पूजना काम का है! इन गुरुओं को तो पूजे जाने की कामनाएँ खड़ी होती है, गुरु होने की कामना रहती है। जब कि कृपालुदेव को कैसी कामना थी, वह तो पहचान, कि 'परम सत् जानने का कामी हूँ।' दूसरी किसी चीज़ की जिन्हें कामना नहीं थी! मुझे तो पूजे जाने की कामना पूरी ज़िन्दगी में कभी भी खड़ी नहीं हुई। क्योंकि वह तो बोदरेशन कहलाता है। पूजने की कामना चाहिए, अपने से कोई बड़ा हो उसे! ('पुजाने में से) एक मात्रा ही हटा देनी है न? (पूजने) बस! प्रश्नकर्ता : मान, पूजा आदि गर्वरस वे सभी पोतापणां की महफिलें हैं न? दादाश्री : वे सभी पोतापणां को मजबूत करनेवाली चीजें हैं ! पोतापणां को मज़बूत किया हो वह फिर कभी प्रकाश में आता है न, किसीके साथ! तब लोग कहेंगे, 'देखो, असलियत सामने आई न!' उसका पोतापणां बाहर आता है, इसलिए उससे कभी भी अच्छा नहीं होता! यानी कि पूजे जाने की कामना छूटती नहीं है, अनादि काल से यह भीख छूटी नहीं है। रहे नहीं नाम किसीके फिर नाम की भी भीख होती है, इसलिए पुस्तकों में भी उनके नाम छपवाते हैं। इसके बदले तो शादी करनी थी न, तो बच्चे नाम आगे बढ़ाते। यहाँ किसलिए नाम रखने हैं, गुरु होने के बाद ! पुस्तकों में भी नाम ! 'मेरे दादागुरु और मेरे बाप-गुरु और फलाने गुरु!' ऐसा ही सब छपवाते रहते हैं। इन
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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