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________________ गुरु-शिष्य खोजी तो ऐसा नहीं होता श्रद्धा तो ऐसी बैठ जानी चाहिए कि हथौड़े मारकर भी हटाएँ तो भी हटे नहीं वैसी। बाक़ी जो श्रद्धा बिठाते हैं, वह जाती है, उठी हुई हो उसे श्रद्धा बैठानी पड़ती है और बैठी हुई हो उसे उठानी पड़ती है। ऐसा यह सब उठकबैठक, उठक-बैठक होता ही रहेगा जगत् में। एक जगह पर छह महीने श्रद्धा रही, तो वहाँ दूसरी जगह पर दो वर्ष श्रद्धा रही, तो किसी जगह पर पाँच वर्ष श्रद्धा रही, परंतु उठ जाती है वापिस। ___ इसलिए श्रद्धा तो इस जगत् में रखना नहीं, जहाँ रखोगे वहाँ फँसोगे। श्रद्धा अपने आप आए, तो ही 'वहाँ' बैठना। श्रद्धा आनी चाहिए। 'रखी हई' श्रद्धा कितने दिन टिकेगी? एक सेठ ने कहा, 'मुझे तो बापजी पर बहुत श्रद्धा है।' मैंने कहा, 'आपको किसलिए श्रद्धा है? आइए सेठ, आइए सेठ कहकर सबकी उपस्थिति में बुलाते हैं न, इसलिए आपको श्रद्धा बैठ ही जाएगी न!' जो खोजी व्यक्ति हो, वह ऐसी श्रद्धा बिठाएगा? मैं तो खोजी था। मैंने तो बापजी से कह दिया था कि, 'ऐसा कुछ बोलिए कि मुझे श्रद्धा बैठ जाए। आप अच्छा-अच्छा बोलते हैं कि आइए अंबालालभाई, आप बड़े कॉन्ट्रैक्टर हैं, ऐसे हैं, वैसे हैं, वह मुझे पसंद नहीं है। आप मीठा-मीठा बोलकर श्रद्धा बैठाओ, वह मीनिंगलेस बात है। मुझे गालियाँ देकर भी ऐसा कुछ बोलिए कि मुझे श्रद्धा बैठे।' बाक़ी, यह 'आओ, पधारो' ऐसा कहें तो लोगों को धीरे-धीरे श्रद्धा बैठती है। इसलिए 'यहाँ अपने को अच्छा है' ऐसा वे कहेंगे। प्रश्नकर्ता : परंतु पढ़े-लिखे विद्वान लोग बात को तुरंत समझ जाते हैं न? दादाश्री : हाँ, परंतु सभी पढ़े-लिखे लोग तुरंत समझ जाते हैं कि यह सब झूठ है, झूठ कब तक चलाते हैं लोग? यह तो श्रद्धा बैठ जाए, इसलिए तो 'आइए फलाँ सेठ, आइए, आइए' कहेंगे। परंतु इस सेठ को बुलाते रहते हैं और क्यों फलाँभाई को नहीं बुलाते?
SR No.030116
Book TitleGuru Shishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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