SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक पत्नी व्रत का अर्थ ही ब्रह्मचर्य प्रश्नकर्ता : अपने में तो एक ही कहा गया है और पहले तो तीनतीन, ऐसा क्यों? दादाश्री : आपसे भी कहता हूँ लेकिन आपमें शक्ति होनी चाहिए। एक के साथ तो लड़ाई-झगड़े करते हो। एक आदमी था। वह दूसरी शादी कर आया था, मैंने उससे पूछा, 'भैया, अब आप क्या करते हैं, दो वाइफ और तुम क्या करते हो?' यह तो मैं चालीस साल पहले की बात कर रहा हूँ, आज की नहीं। तब उसने कहा, 'नयी बनाए रोटियाँ और पुरानी बनाए दाल, बंदा बैठा कढ़ी हिलाए, तीनों साथ-साथ!' शक्ति हो तो करो न, निभाने की शक्ति होनी चाहिए। एक को तो पहुँच नहीं पाते और ऐसे शोर मचाते हैं फिर! एक पत्नीव्रत पालन करोगे न? तो कहता है, 'पालूँगा।' तो आपका मोक्ष है। दूसरी स्त्री का ज़रा सा भी विचार आया, तभी से मोक्ष गया। क्योंकि वह अणहक्क का है। जहाँ हक़ का है, वहाँ पर मोक्ष और जहाँ अणहक्क का है, वहाँ पर पशुता। अपने ऋषि-मुनि तो एक ही स्त्री रखते थे और वह भी साल में एकाध बार स्त्री संग हो तो ठीक है, एकाध बार पुत्रदान हेतु शादी करते थे। प्रश्नकर्ता : मेरा पूछना यह है कि जो मन-वचन-काया से ब्रह्मचारी हो, क्या ऐसा कोई पुरुष जगत् में जन्मा है क्या? दादाश्री : इस काल में नहीं है। प्रश्नकर्ता : पहले थे क्या? दादाश्री : पहले तो थे ही न! अपने यहाँ महासतियाँ होती थीं वे एक पतिव्रता थीं। ये ऋषि-मुनि सभी एक पत्नीव्रतवाले थे। प्रश्नकर्ता : महासती के पति तो थे ही न? । दादाश्री : हाँ, लेकिन पतिव्रतवाली। पतिव्रत के नियम का बिल्कुल भंग नहीं होने देती थीं और ऋषि-मुनि तो संपूर्ण ब्रह्मचर्यव्रतवाले थे।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy