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________________ अणहक्क की गुनहगारी पहले के काल में मनुष्य कैसे होते थे? परायी बहन-बेटी को भी खुद की बहन-बेटी समान मानते थे और खुद की भी खुद की। कैसा सुंदर वातावरण था! यह तो सब 'फ्रैक्चर' हो गया है, फिर सुख कैसे मिलेगा? सांसारिक सुख तो इसमें है ही नहीं। श्री विज़न की जागृति बहुत ही कम अणहक्क का हो तो लोग मारने दौड़ते हैं, ऐसा क्यों? अणहक्क का डाका डाला इसलिए! अणहक्क का डाका क्या जान-बूझकर डालते हैं? नहीं, वह तो दृष्टि ही ऐसी हो गई है। लोगों की दृष्टि तो तरह-तरह की होती है। आपकी दृष्टि भले ही सीधी हो, फिर भी वह स्त्री आपकी दृष्टि आकृष्ट कर लेगी। अत: वहाँ फिर नज़र मिलाओ तो झंझट हो जाएगा न! ज्ञानीपुरुष को तो किसी के भी सामने देखने में हर्ज नहीं है। क्योंकि उनके पास तो हर तरह के 'लॉक एन्ड की' होते हैं, उनके सामने किसीकी भी नहीं चलती। लेकिन सभी तरह के 'लॉक एन्ड की' कब मिलते हैं कि जब विषय बंद हो जाए, उसके बाद। यानी ज्ञानीपुरुष में विषय होता ही नहीं, इसलिए उनके पास ऐसा व्यवहार ही नहीं आता न? विषय कब जाता है? विषय तो जागृति से जाता है। विषय यों ही चला जाए, ऐसा नहीं है। अंतिम विषय, एक हक़ का विषय भी कब छूटता है? जागृति हो तभी। जागृति किसे कहते हैं कि स्त्री-पुरुष कपड़े पहने हुए हों फिर भी नंगे दिखाई दें, फिर 'सेकन्ड विज़न' में चमड़ी निकल गई हो ऐसे दिखाई दें और 'थर्ड विज़न' में अंदर का सारा माल मसला हुआ हो, ऐसा दिखाई दे। ये तीनों विज़न ‘एट-ए-टाइम', एक मिनट में ही दिख जाएँ। अब इतनी जागृति होगी, तब जाकर अंतिम स्टेशन तक पहुँच पाएँगे। पूरी दुनिया में ऐसी जागृतिवाले कितने होंगे? सौ-दो सौ लोग होंगे न? किसी भी काल में एक भी व्यक्ति ऐसी जागृतिवाला नहीं होता। इस काल में, यह मैं अकेला ही हूँ। ऐसी जागृतिवाले तो होते होंगे? खुद देहधारी होने पर भी ऐसी जागृति तो रहती होगी? बड़ा साइन्टिस्ट हो या मानसशास्त्री हो, लेकिन ऐसी जागृति रह ही नहीं पाती न! प्रश्नकर्ता : आपके ज्ञान के बाद, यह जानने के बाद कुछ महात्माओं की ऐसी जागृति हो गई होगी न?
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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