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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दादाश्री : हाँ, ऐसा ही कहेंगी न! आपका और इन महिला का, दोनों का साझा व्यापार। अतः इसमें स्त्री का दोष नहीं है, बुख़ार का दोष नहीं है। बुख़ार नहीं चढ़ा हो और दवाई पीओ, उस चीज़ का दोष है। यानी यह सब जोखिमदारी समझ लेना। अपनी यह बात भरोसे लायक है और तुरंत ही अनुभव में आए, ऐसी बात है! ऐसी सरलता मोक्षार्थी को कहाँ से? दवाई नियम से ली जाए, तभी उसे 'आज्ञा में रहा' ऐसा कहा जाएगा। विषय की लिमिट होनी चाहिए। स्त्री-पुरुष का विषय कहाँ तक होना चाहिए? परस्त्री नहीं होनी चाहिए और परपुरुष नहीं होना चाहिए। और कभी उसका विचार भी आए तो उन्हें प्रतिक्रमण से धो देना चाहिए। सबसे बड़ा जोखिम हो, तो इतना ही है-परस्त्री और परपुरुष! खुद की स्त्री में जोखिम नहीं है। अब हमारी इसमें कहीं कोई भूल है? क्या हम डाँटते हैं किसी भी तरह? उसमें क्या कोई गुनाह है? यह हमारी साइन्टिफिक खोज है कि कितने से, कहाँ पर कर्म नहीं चिपकते, ऐसी खोज है! वर्ना साधुओं को तो यहाँ तक कहा गया है कि यदि स्त्री का लकड़ी का पुतला हो, तो उसे भी मत देखना। जहाँ स्त्री बैठी हो उस जगह पर बैठना नहीं। लेकिन मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा है न? और इतना आसान हो तो पालन करना चाहिए न? या उसमें कोई मुश्किल आती है ? प्रश्नकर्ता : हमें आगे बढ़ना है, इसलिए पालन करना ही है। दादाश्री : बुख़ार चढ़े तभी पीना। यह तो समझदार इन्सान का ही काम है न? अतः हमारा यह थर्मामीटर मिल गया है। तभी तो हम कहते हैं न कि स्त्री के साथ मोक्ष दिया है! ऐसी सरलता किसी ने नहीं दी है। बहुत ही सरल और सीधा मार्ग दिया है। अब आपको जैसा सदुपयोग करना हो, वैसा करना। एकदम सरल ! ऐसा कभी हुआ ही नहीं! यह निर्मल मार्ग है, भगवान भी जिसे एक्सेप्ट करें, ऐसा मार्ग है! किसी व्यक्ति को सजा हुई हो और उसे जेल में डाल दिया जाए और वह वहाँ जाकर ज़मीन लीप रहा हो तो हम क्या समझेंगे? क्या उसे
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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