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________________ ब्रह्मचर्य हेतु वैज्ञानिक 'गाइड' २८५ 'गाइड' का उपयोग करके हुए पास एक भाई तो पुस्तक पढ़कर आए थे। बड़े दुःखी हो रहे थे। मैंने पूछा, 'क्या दुःख आ पड़े हैं ?' तब कहा, 'आपकी पुस्तक पढ़ी, इसलिए यह दुःख आ पड़ा है।' 'कौन सी पुस्तक पढ़ी जो आपको दुःख हुआ ?' तब कहा, ‘ब्रह्मचर्य की पुस्तक पढ़ने के बाद मुझे बहुत दुःख हुआ, अरे ! मैं इतना नालायक, मैं ऐसा जानवर जैसा' मैंने कहा, 'वह आपको नापना है, मुझे वह नापने से क्या मतलब है ? पुस्तक आपसे क्या कहती है ? पुस्तक आपको जानवर जैसा नहीं कहती।' तब कहा, 'मुझे अब बहुत दुःख हो रहा है, ऐसा क्यों हो रहा है? ये पाप कैसे धुलेंगे?' मैंने कहा, 'अभी जितना खुल कर बता दोगे तो निबेड़ा आ जाएगा, वह पुस्तक पूरी पढ़ ली ?' तब कहा, ‘पूरी, हर एक शब्द पढ़ लिया । भीतर चीरे पड़ गए, दरारें पड़ गईं कितनी।' मैंने पूछा, 'अब क्या करोगे फिर ?' तब कहा, 'आप जो कहें !' तब मैंने कहा, 'फिर से पढ़ना ।' ब्रह्मचर्य से संबंधित ज्ञान ही हिन्दुस्तान में नहीं दिया गया है न ? इसलिए इस हिन्दुस्तान के ऋषि-मुनियों की संतानें पाशवता की ओर चलीं । पशुयोनि जैसे हो गए । ये वापस पलट जाएँ न, तो बहुत काम हो जाएगा। कोई व्यक्ति सही रास्ते पर, राइट वे पर हो, तो उस साइड पर धीरे - धीरे चलता है । उसके बजाय अगर रोंग वे पर चलकर वापस आया हो न, तो बहुत स्पीडी चलता है। मन में ठान लिया होता है कि अब इस पार या उस पार । वह धीरे-धीरे चलनेवाला तो रास्ते में चाय-पानी करता हुआ जाएगा । ब्रह्मचर्य की यह पुस्तक पढ़कर आज ही हमें चिठ्ठी दी है कि, 'दोनों को ब्रह्मचर्य व्रत दे दीजिए। हमें बहुत दुःख हो रहा है,' कहते हैं। क्योंकि ऐसा कहनेवाला कोई मिला ही नहीं कि इसमें ऐसे-ऐसे गुनाह हैं या ऐसे दोष हैं ! जो भी कोई क्लियर है, वही लिख सकता है, वर्ना ब्रह्मचर्य पर कोई नहीं लिख सकता। यानी ऐसी कोई पूरी पुस्तक ही नहीं है, ऐसी क्लियर कोई एक भी पुस्तक नहीं है। पुस्तक पढ़कर भी पालन कर सकते हैं ब्रह्मचर्य ब्रह्मचर्य का विषय तो कॉलेज में रखने जैसा है । और ऐसी पुस्तक
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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