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________________ आकर्षण - विकर्षण का सिद्धांत इस ज्ञान को उलट दे। सिर्फ यह विषय ही ऐसा है । अन्य सबकुछ भले ही रहा। जीभ के विषय वगैरह, वे सभी दावा नहीं करते। वह चेतन के साथ नहीं है। वह अचेतन है और यह तो मिश्रचेतन है । इसलिए इस विषय में तो आपकी इच्छा नहीं हो फिर भी वश में होना पड़ता है, वर्ना वह दावा कर सकती है और कभी भटका भी सकती है । अतः इसमें बहुत जागृति रखना। इस वजह से यहाँ तो कुछ लोग हमेशा के लिए व्रत ही ले लेते हैं और हम देते भी हैं। या फिर कोई सालभर के लिए ट्रायल के तौर पर ले तो ऐसा करते-करते शक्ति बहुत बढ़ जाती है । यह विषय है ही ऐसा कि भटका दे । हमने जो आत्मा दिया है, उसे भी फिकवा दे। २७७ अवस्था दृष्टि से देखने पर ही उसका ऐसा सब असर होता है। अवस्था दृष्टि से ही आकर्षण - विकर्षण है, तत्वदृष्टि से नहीं है। अवस्था में तन्मयाकार हो जाए कि तुरंत ही अंदर लोहचुंबकत्व उत्पन्न हो जाता है और उससे फिर आकर्षण शुरू होता है । प्रश्नकर्ता : जब लोहचुंबक और पिन दोनों आमने-सामने आते हैं, तब आकर्षण होता है। अब यह आकर्षण नाबूद कब होगा ? दादाश्री : यह तो हमेशा रहेगा ही । जब तक लोहा लोहे के भाव में है, तब तक रहेगा। यदि लोहचुंबकत्व उतर जाए तो आकर्षण चला जाएगा। जहाँ आकर्षण, वहाँ ज़रूरी है प्रतिक्रमण जहाँ आकर्षण, वहाँ मोह । जहाँ हमारी आँखे खिंचें, जहाँ पर अंदर बहुत ही आकर्षण होता रहे, वहाँ मोह होता ही है । इसलिए शास्त्रकारों ने बहुत सावधान किया है कि आकर्षणवाली जगह पर उपयोग रखना, शुद्ध उपयोग रखना तो वह आपको परेशान नहीं करेगी। वर्ना वह तो आकर्षणवाली जगह है । यदि फिसलनवाली जगह हो तब हम क्या करते हैं ? प्रश्नकर्ता : वहाँ सावधान रहकर चलते हैं ।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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