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________________ संसारवृक्ष की जड़, विषय प्रश्नकर्ता : लेकिन कौन सा दोष बड़ा हैं, वह 'चंदूलाल' को समझना तो पड़ेगा न ? २५७ दादाश्री : हाँ, ‘चंदूलाल' को समझना पड़ेगा, 'चंदूलाल' से कहना कि, 'समझो, ऐसा नहीं चलेगा। हाँ, वर्ना दादाजी को बता दूँगा ।' ऐसा कहना। प्रश्नकर्ता: और यह बात सही है या नहीं कि विषय दोष, कषाय से भी बड़े होते हैं ? दादाश्री : नहीं, विषय दोष होते हैं, लेकिन विषय ऐसी चीज़ है कि विषय, वह इफेक्टिव है । कषाय, वे कॉज़ेज़ हैं। यानी इफेक्ट तो उसका सारा इफेक्ट देकर चला जाएगा। ये जितने विषय हैं न, वे मात्र इफेक्टिव हैं और कषाय कॉज़ है । इसलिए कषाय ही दुःखदायी हैं और कषाय से ही संसार खड़ा है । लेकिन यह समझने की ज़रूरत है कि वह किस तरह से इफेक्टिव हैं। अत: उसे बहुत महत्व मत देना। उसके लिए चंदूभाई से कहना, 'ऐसा नहीं हो तो अच्छा!' ऐसा कहना कभी दो-तीन दिनों में एकबार कहने के लिए ही थोड़ा कहना, वह भी फ्रेन्डली टोन में! प्रश्नकर्ता : ज़्यादा कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी ? दादाश्री : बिना वज़ह क्यों बेचारे को । अपने साथ रहते हैं, पड़ोस में। अब उसका कोई आधार भी नहीं रहा। जो आधार था, वह भी निराधार हो गया, बेसहारा हो गए। अतः यदि कभी चिढ़ जाए और डिप्रेस हो जाए तो आईने के सामने ले जाकर कँधा थपथपाना और कहना कि, 'हम हैं तेरे साथ, घबराना मत, भाई ।' फिर कहना, लेकिन फ्रेन्डली टोन में कहना कि, 'ऐसा किसलिए ? अब किसलिए? क्या फायदा है ? और दादाजी जानेंगे तो अच्छा लगेगा ?' ऐसा कहना । प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि वे गाँठें जल्दी नहीं जाएँ तो कभी कुछ करना नहीं पड़ेगा?
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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