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________________ विषय भोग, नहीं हैं निकाली के लिए आपसे कहते हैं कि छ: महीनों के लिए विषय छोड़कर तो देखो ! सिर्फ पता लगाने के लिए कि यह सुख आत्मा में से आया या विषय में से आया? २४५ प्रश्नकर्ता : इतना तो पता चलता है कि विषय की वजह से सच्चे सुख का पता नहीं चलता, फिर भी वह हो जाता है I दादाश्री : हो जाए, उसमें हर्ज नहीं है। यह 'अक्रमविज्ञान' है, बहुत अलग तरह का विज्ञान है । वर्ना वहाँ क्रमिक में तो एक भी 'डिस्चार्ज' नहीं चलने देते। हमने तो पूरी जिंदगी के 'डिस्चार्ज' चला लिए हैं। यह तो ‘अक्रमविज्ञान' है! विज्ञान यानी क्या, कि कोई उसकी बराबरी नहीं कर सके। भगवान के ताबे में या स्त्री के ? तभी हमने कहा है न, कि भाई, पूरी दुनिया ने जिसके लिए ऐसा कहा है कि विषय, वह विष है। हम उसके लिए कहते हैं कि विषय, वह विष नहीं है। साधु समझते हैं कि हम पार उतर गए और ये संसारी डूब गए। अरे, कोई बाप भी पार नहीं उतरा है और तू डूबा भी नहीं है। तू क्यों घबराता है? पत्नी यदि डुबोती तो भगवान शादी ही नहीं करते न! पत्नी नहीं डुबोती, तेरी नासमझी डुबोती है । तुझे आराधना कैसे करनी चाहिए, निकाल कैसे करना चाहिए, वह तू नहीं जानता । महावीर भगवान तीस साल तक पत्नी के साथ रहे थे और बेटी भी हुई थी और आखिर महावीर भगवान को भी अलग होना पड़ा था । आखिरी बयालीस साल स्त्री के बगैर ऐसे ही रहे थे। आपके तो आखिरी पंद्रह साल स्त्री के बिना गुज़रें, मन-वचन-काया से यह छूट जाए तो भी बहुत हो गया, ऐसा कहते हैं । वर्ना अंतिम दस साल निकले तो भी बहुत हो गया। और कुछ नहीं, तो अंत में ऐसा ब्रह्मचर्य होना चाहिए। अब वह उदय कब आएगा? जब इससे संबंधित ज्ञान सुनोगे तब उदय आएगा । सुने बगैर ज्ञान कभी भी दर्शन में नहीं आता और जब तक दर्शन में नहीं आए, तब तक ‘रोंग बिलीफ' नहीं टूटती । ब्रह्मचर्य तो बहुत उत्तम चीज़ है, लेकिन यदि वह उदय में आ जाए
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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