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________________ २२६ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) इस विषय में तो आप 'प्रसंग' छोड़ दो, फिर भी वह दावा करती है, या फिर आपके साथ बैर बाँधती है। उससे फिर क्लेम ही खड़े होते हैं! प्रश्नकर्ता : एक पत्नी के अलावा जो विषय होता है वह? दादाश्री : नहीं, एक पत्नी के साथ हो, फिर भी एक ही विषय सुख में दो पार्टनर होते हैं न? उसमें अगर आप कहो कि 'उकता गया', तब वह कहेगी, 'मैं नहीं उकताई', तब क्या होगा? । यह 'समभाव से निकाल' करने का नियम क्या कहता है, तू किसी भी प्रकार से ऐसा कर कि उसके साथ बैर नहीं बँधे, बैर से मुक्त हो जा। बैर का कारखाना हमें यहाँ एक ही चीज़ करनी है कि बैर नहीं बढ़े और बैर बढ़ाने का मुख्य कारखाना कौन सा है? यह स्त्रीविषय और पुरुषविषय! प्रश्नकर्ता : उसमें बैर कैसे बँधता है? अनंतकाल के लिए बैर बीज पड़ता है, वह कैसे? दादाश्री : ऐसा है न कि कोई मृत पुरुष या मृत स्त्री हो और ऐसा मान लो कि उसमें कोई दवाई भरकर और पुरुष, पुरुष जैसा ही रहे और स्त्री, स्त्री जैसी ही रहे तो हर्ज नहीं है। उसके साथ बैर नहीं बँधेगा, क्योंकि वह जीवित नहीं है, जबकि यह तो जीवित है, यहाँ बैर बँधता है। प्रश्नकर्ता : वह क्यों बँधता है? दादाश्री : अभिप्राय में 'डिफरेन्स' है, इसलिए। आप कहो कि, 'मुझे अभी सिनेमा देखने जाना है।' तब वह कहेगी कि, 'नहीं, आज तो मुझे नाटक देखने जाना है।' यानी टाइमिंग मेल नहीं खाता। यदि एक्जेक्ट टाइमिंग से टाइमिंग मिले तभी शादी करना। प्रश्नकर्ता : फिर भी कुछ ऐसे होते हैं कि उनके कहे अनुसार होता भी है। दादाश्री : वह तो कोई ग़ज़ब के पुण्यशाली हों, तब जाकर उनकी
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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