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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) दादाश्री : अपनी इच्छानुसार थोड़े ही होता है ? 'व्यवस्थित' की जो फिल्म है, वह छोड़ती नहीं न उसे ? २१८ पहले तो इतना अच्छा था कि चाहे कैसी भी बीवी लेने जाए, फिर भी बहुत हुआ तो बीवी की दो-तीन शर्तें होती थीं। 'पानी की मटकी कबूल ?' तब वह कहता, 'कबूल । ' ' लकड़ी का गट्ठर कबूल ?' तब पति कहता, 'कबूल।' निकाह पढ़ते समय इतनी शर्तें कबूल करवाती थी । 'जो पानी भरकर लाए, जंगल में से लकड़ियाँ ले आए, वह अच्छा है ।' लेकिन आज की पत्नियाँ तो क्या कहेंगी ? ' इस समय सिनेमा में आना पड़ेगा, वर्ना आपके दोस्त के साथ कभी जाते देख लिया तो आपकी खैर नहीं !' ' अरे ! मैंने तुझसे शादी की है या तूने मुझसे शादी की है ?' इसमें किस ने किस से शादी की? लेकिन यह तो मिश्रचेतन है । और फिर ये तो पढ़ी-लिखी हैं और यदि उनसे कह दिया कि 'तू नहीं समझेगी' तो आपका तेल निकाल देगी! इसमें सुख है ही नहीं, इससे तो 'फाइल' बढ़ती है। इन 'फाइलों' के साथ फिर क्लेश होता है, फिर घर की हो या बाहर की ! अतः मिश्रचेतन के साथ हिसाब शुरू मत करना, वर्ना वह क्लेम करेगी ! यदि बिस्तर पर नहीं सोए और पत्थर पर सो जाएँ तो क्या बिछौना दावा करेगा कि क्यों मुझे छोड़कर पत्थर पर सो रहे हो ? और मिश्रचेतन तो दावा करता है कि आज क्यों अलग हो गए ? छोड़ती नहीं । अलग करने जाएँ तो बल्कि पास आएगी ! अतः मिश्रचेतन के साथ झंझट में मत पड़ना ! आलू के साथ अनबन हो और आलू नहीं लाएँ तो आलू शोर नहीं मचाएँगे और उन्हें नहीं खाएँ फिर भी कुछ नहीं बोलेंगे ! लेकिन मिश्रचेतन तो ऐसी लपेट में लेता है कि अनंत जन्मों तक भी वह छूट नहीं पाता। इसलिए भगवान ने कहा है कि मिश्रचेतन से दूर रहना ! स्त्री से दूर रहना ! वर्ना मिश्रचेतन तो मोक्ष में जाने से रोके, ऐसा है ! ये पान - - बीड़ी भी लफड़ा ही कहलाते हैं । लेकिन इन लफड़ों से तो, ऐसा मानो न, कि किसी दिन छूट सकेंगे, लेकिन वे लफड़े तो नहीं छूटेंगे। जीवित लफड़े हैं न ! हम जीवित को लफड़ा कहते हैं। उन लफड़ों को तो चला सकते हैं। वे तो निर्जीव ही हैं न ? सिर्फ अपनी ही शिकायत
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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