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________________ २०० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) तब तो मैं इसे सँभाल लूंगा।' और तभी उसे विज्ञान का लाभ मिलेगा न! अतः हमने तो इसी एक चीज़ पर जोर दिया है। खेद द्वारा छूट सकते हैं, विषय से ज़रा सी भी चंचलता उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। विषय में चंचलता, वही अनंत जन्मों के दुःख की जड़ है। दिनोंदिन दुःख ही उत्पन्न होते रहते हैं, वर्ना आत्मा प्राप्त होने के बाद दुःख कैसे उत्पन्न हो सकता है? यह तो भयंकर दोष कहलाता है। वर्ना इससे तो दुःख हो तो भी चला जाए और सुख आए। सभी अच्छी चीज़े आ मिलें। आत्मा प्राप्त हुआ, तब सारी सुविधाएँ सरलता से प्राप्त होती रहें, पद्धति अनुसार होती रहें। यों ही गप्प नहीं चलेगी न! यह तो वीतरागों का विज्ञान है! सच्चा सुख नहीं मिला है, इसलिए ये सभी विषय भोग रहे हैं, वर्ना विषय क्यों भोगते? आत्मा विषयी है ही नहीं, आत्मा निर्विषयी है। यह तो कर्मों के प्रताप से दुःख होता है, वह सहन नहीं होने की वजह से ऐसे गटर में हाथ डालते हैं। गटर में मुँह डालकर गटर की गंदगी पीते हैं। ज्ञान नहीं था इसलिए सहन नहीं होता था, अब यह ज्ञान दिया है तो आप में सहन करने की शक्ति उत्पन्न हो गई है। आपको जुदापन का भाव रह सकता है। तो फिर विषय क्यों होने चाहिए? लेकिन फिर भी परिणाम कोई भी नहीं बदल सकता, क्योंकि ये पुद्गल परिणाम हैं और यह तो रिज़ल्ट हैं। रिज़ल्ट नहीं बदला जा सकता लेकिन रिजल्ट पर खेद, खेद और खेद रहे तो आप छूट जाओगे। आपको यदि खेद है, तो आप मुक्त हो और रिजल्ट में एकाकार हो तो बंधन है। यह विज्ञान इतना सुंदर है! आज तक किसी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इस व्यक्ति ने पूरणपूरी खाई, तो उसके लिए वह गुनहगार है क्या? तब हम क्या कहते हैं कि नहीं, वह गुनहगार नहीं है, फिर भी जगत् ने उसे गुनहगार माना है। उसका कारण यह है कि उसके पीछे उसके पूरणपूरी खाने के भाव होते हैं कि पूरणपूरी बहुत अच्छी है या फिर बहुत खराब है। इसलिए ये लोग पूरणपूरी नहीं खाने देते। यदि अंदर से भाव नहीं पलटें
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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