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________________ ले पाओ तो मियादी लेना, लेकिन समझकर व्रत ले लें तो वापस लौटने का चान्स रहता है वर्ना विषय तो, अंत तक छूटे, ऐसा है ही नहीं। व्रत लेने के बाद व्रत के रक्षण हेतु पहले से ही जागृति रखना हितकारी है। एकांत शैयासन और स्पर्शदोष तक से रहित व्यवहार इस व्रत का रक्षण करता रहता है एवं 'ज्ञानीपुरुष' से प्रतिदिन दस-पंद्रह मिनट ब्रह्मचर्य व्रत में रहने की शक्तियाँ माँगते रहने से बल मिलता रहता है। खुद का निश्चय और 'ज्ञानीपुरुष' का वचनबल, उनकी विधि और उनके आशीर्वाद जो कि कल्पनातीत शक्तियाँ प्रकट करानेवाले हैं। इसमें खुद का तो मात्र दृढ़ निश्चय और निश्चय के प्रति सिन्सियारिटी चाहिए, बाकी का सब काम तो 'ज्ञानीपुरुष' का वचनबल ही कर देता है। उस अद्भुत 'व्रतविधि' के परिणाम तो वही जाने जिसने 'व्रत-विधि' प्राप्त की है। १०. आलोचना से ही जोखिम टलें व्रत भंग के संयोगवश किसी से व्रतभंग हो जाए तो? उसके भयंकर जोखिम हैं, भयंकर नर्कगति के जोखिम खड़े हो जाते हैं। जान-बूझकर, नीयत बिगाड़ी इसीलिए तो व्रतभंग हुआ न? फिर भी करुणामय 'ज्ञानी' तो ऐसे व्रतभंग करनेवालों को भी, उनके द्वारा सच्चे दिल से तुरंत की हुई आलोचना-प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान से व्रतभंग के दोष से छुड़वा देते हैं। लेकिन इससे किसी को व्रतभंग की छूट नहीं मिल जाती। यह उपाय तो व्रतरक्षा की संपूर्ण सावधानी रखने के बाद भी 'एक्सीडेन्ट' हो जाए तब करना है। बाकी जो जान-बूझकर टकराए उसका क्या करें? 'ज्ञानीपुरुष' भी पात्रता देखकर ही माफ़ी देते हैं न? हृदयपूर्वक किए गए पश्चाताप और दृढ़ता से पुन: निश्चय करके, खुद की भूल मिटाने का उसका पुरुषार्थ और शुद्ध नीयत देखकर ही 'ज्ञानी' फिर से 'विधि' करके, उसे दोष में से छुड़वाते हैं ! जो किसी भी चीज़ के कर्ता नहीं हैं, ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' कुछ भी कर सकते हैं। 'अक्रमविज्ञान' एकावतारी या दो अवतारी पद की प्राप्ति करानेवाला होने के कारण, विषय यदि पूर्णरूप से नहीं छूट सके तो विषय से सर्वांश 21
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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