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________________ चारित्र का प्रभाव १७५ जाता है। अब ब्रह्मचर्य के लिए ज़ोर लगाकर, यों खींच-तानकर लाने जैसा नहीं है। ब्रह्मचर्य अपने आप सहज उदय में आए तभी काम का है । आपका भाव ब्रह्मचर्य के लिए होना चाहिए। जब तक ब्रह्मचर्य ठीक से नहीं सँभाल पाते, तब वह तक पौद्गलिक सुख और आत्मसुख के बीच का भेद नहीं समझने देगा। व्यवहार चारित्र यानी किसी स्त्री को दुःख हो ही नहीं, ऐसे बरतना । किसी स्त्री के लिए दृष्टि नहीं बिगाड़े। कुछ मुद्दत के लिए लिया गया चारित्र्य तो अच्छा कहलाता है । अभ्यास तो हो जाएगा न ! चारित्र्य लिया मतलब झंझट ही खत्म हो जाएगा न ! फिर वे विचार ऐसा समझेंगे कि इन्हें अपमान महसूस होगा, अतः जान-बूझकर कम आएँगे । 'ज्ञानीपुरुष' के आधार पर चारित्र्य, वह तो सबसे बड़ी चीज़ है I जबकि 'ज्ञानीपुरुष' का चारित्र तो बहुत ही उच्च होता है। कभी मन भी नहीं बिगड़ता । विषय का विचार तक नहीं आना चाहिए और यदि विचार आ जाए तो उसे धो देना। मन में यदि सिर्फ विषय का भाव ही उत्पन्न हो, यानी वाणी में नहीं हो, वर्तन में नहीं हो, विचार में नहीं हो लेकिन कभी यदि ज़रा सा भी विचार मन में आए, तो उसका प्रतिक्रमण कर लेना । इसे व्यवहार चारित्र कहा जाता है । निश्चय चारित्र में तो भगवान ही बन जाएगा । निश्चय चारित्र, वही भगवान । केवलज्ञान के बिना निश्चय चारित्र संपूर्ण नहीं हो सकता, पूर्ण दशा में नहीं हो सकता। व्यवहार चारित्र यानी पुद्गल चारित्र, आँखों से दिखाई दे ऐसा चारित्र और जब निश्चय चारित्र उत्पन्न हुआ कि भगवान बन गया, ऐसा कहा जाएगा। अभी तो आप सभी को 'दर्शन' है, फिर ज्ञान में आएगा, लेकिन चारित्र उत्पन्न होने में देर लगेगी। फिर भी अक्रम है न, इसलिए चारित्र शुरू होगा ज़रूर, लेकिन आपके लिए समझना मुश्किल है । प्रश्नकर्ता : उसके लक्षण क्या होते हैं ? दादाश्री : ऐसा है न, वह निश्चय चारित्र बहुत कम होता है। जो
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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