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________________ लो व्रत का ट्रायल १५७ इसका भान नहीं था और व्रत लेने के बाद जो सुख आता है न, उसके बाद मन में विषय के विचार आने ही बंद हो जाते हैं। विषय अच्छा नहीं लगता। मनुष्य को सुख ही चाहिए। यदि वह सुख मिल रहा हो तो जानबूझकर कीचड़ में हाथ डालने को कोई तैयार नहीं होता। लेकिन ये बाहर ताप लगता है। इसलिए कीचड़ में हाथ डालते हैं, ठंडक के लिए। वर्ना कीचड़ में कोई हाथ डालता होगा? कौन डालेगा? लेकिन क्या हो ? बाहर गर्मी लगती है। अब आपको एकबार अनुभव से समझ में आ गया कि इस ज्ञान से विषय के बिना भी बहुत सुंदर सुख रहता है। इसलिए आपको फिर विषय अच्छे नहीं लगते। यह ज्ञान ऐसा है कि सभी विषय अपने आप ही छूट जाते हैं। झड़ जाते हैं सभी, लेकिन अनुभव कर-करके वह (ब्रह्मचर्य) करने से सुख ही मिलता है और सुख मिल गया कि फिर कुछ रहा ही नहीं। ___ विषय में तो बहुत दु:ख और जलन है। जब कोई ज्ञान नहीं हो, समकित नहीं हो और जलन हो तभी जलनवाला व्यक्ति विषय में हाथ डालता है, वर्ना विषय में तो हाथ डालेगा ही कौन? अभी तो हाथ डालने की इच्छा नहीं हों, फिर भी डालना पड़ता है। क्योंकि डिस्चार्ज स्वरूप से है। लेकिन वह भी, कोई लेनदार को पैसे देता है तब क्या बहुत खुश होकर देता है ? उसी तरह विषय का आराधन करना, उस दृष्टि से। वह शौक़ की चीज़ नहीं है। लेनदार आए और उसे पैसे दें, तो वह शौक़ की चीज़ नहीं है। मैंने चौदह साल से देखा है, दोनों सुंदर ब्रह्मचर्य पालन कर रहे हैं। दोनों साथ-साथ घूमते हैं चौदह साल से। पूछा तब कहते हैं, 'ज़रा सा भी दाग़ नहीं है।' शुरूआत में चार साल ज़रा हिचकोले खा रहा था, फिर रास्ते पर आ गया। प्रतिक्रमण से सुधरता है न। प्रतिक्रमण से धोते रहने से रास्ते पर आ जाता है। प्रश्नकर्ता : यदि शादीशुदा ब्रह्मचारी हो, तो वह वेल टेस्टेड होता है न! दादाश्री : टेस्टेड होता है। अविवाहित भी टेस्टेड (प्रमाणित) तो
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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