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________________ कि 'शादी करने में कितना मज़ा है।' भौरे के बिल में एक ने डंक खाया, वह चुप बैठकर सभी को डंक खिलाए, उसके जैसी बात है! ३. अणहक्क की गुनहगारी जो संसारी हों, उन्हें तो हक़ के विषय ही भोगने चाहिए। अणहक्क के विषय के बारे में तो सोचना भी पाप है। त्यागी के लिए तो विषय का प्रश्न ही नहीं उठता। हक़ और अणहक्क के विषय के बीच की भेदरेखा कौन सी? जिनसे विवाह हुआ, उतना ही हक़ का, उसके अलावा अन्य सारा अणहक्क का माना जाएगा। चोर नीयत ही अणहक्क की ओर खींच ले जाती है। किसी की बेटी पर दृष्टि बिगड़ती है, यदि अपनी बेटी पर कोई दृष्टि बिगाड़े तो क्या होगा? अणहक्क के विषयभोग के खूब प्रतिक्रमण करने से सज़ा कम हो जाएगी। अणहक्क के विषय में तो पाँचों महाव्रतों का भंग होता है। हक़ का तो हर कोई स्वीकार करता है, लेकिन अणहक्क का नहीं। चारित्रभ्रष्टता आत्मा के मार्ग पर तो क्या, लेकिन सीधे नर्क में ही ले जाती है। विषय में क्या सुख है ? जानवरों को भी पसंद नहीं आए। उन्हें तो सीज़नल उत्तेजना होती है। सीज़न पूरा होने के बाद फिर उन्हें वैसा कुछ भी नहीं होता। विषयभोग की गति कैसी है? इस जन्म की पत्नी अथवा रखैल अगले जन्म में खुद की ही बेटी बनकर आती है! अणहक्क का खाया, पीया या भोगा हो तो उसके खूब सारे प्रतिक्रमण करना। तभी कुछ छूटने का मार्ग मिलेगा। ४. एक पत्नीव्रत का मतलब ही ब्रह्मचर्य वैसे खुद की ब्याहता अर्थात् हक़ की स्त्री के साथ विषयभोग में आपत्ति नहीं उठाई लेकिन मन-वचन-काया से जो एक पत्नीव्रतधारी होगा, उसे अक्रमज्ञानी ने इस काल में ब्रह्मचारी कहा है और उसके ब्रह्मचर्य की उन्होंने खुद ने गारन्टी ली है। 15
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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