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________________ विषय बंद, वहाँ लड़ाई-झगड़े बंद गालियाँ प्रिय है? मुझे तो कभी किसी ने एक गाली दी हो, तो फिर मैं तो उसके साथ संबंध ही कट कर दूं, फिर बाहरी संबंध रखू लेकिन आंतरिक संबंध कट! क्या यह जन्म गालियाँ सुनने के लिए है? आपको यदि घर में रोज़-रोज़ के लड़ाई-झगड़े पसंद नहीं हों, तो फिर उसके साथ विकारी संबंध ही बंद कर देना। पाशवता बंद कर देना। विषय तो निरी पाशवता है। इसलिए पाशवता बंद कर देना। जो बुद्धिमान और समझदार होगा, उसे विचार नहीं आएगा? फोटो खींचे तो कैसा दिखेगा? फिर भी शर्म नहीं आती? मैंने ऐसा कहा, तब ऐसा सोचोगे, वर्ना ऐसा विचार कहाँ से आएगा? जब तक आपमें विकारी संबंध है, तब तक यह लड़ाई-झगड़े रहेंगे ही। इसलिए हम आपके लड़ाई-झगड़ो के बीच पड़ते ही नहीं। हम जानते हैं कि जब विकार बंद हो जाएँगे तब उसके साथ झगड़े बंद हो ही जाएँगे। एक बार उसके साथ विकार बंद कर दिया न, फिर तो यह (पति) उसे मारे तो भी वह कुछ नहीं बोलेगी, क्योंकि वह जानती है कि अब मेरी हालत खराब हो जाएगी! यानी अपनी भूल से ही यह सब हो रहा है। अपनी भूल के कारण ही ये सारे दुःख हैं। वीतराग कितने समझदार! भगवान महावीर तो तीस साल की उम्र में ही अलग होकर वा... ह... ! मस्ती में घूमते थे। एक बेटी को छोड़कर चल पड़े थे! उसके साथ विषय बंद करने के अलावा अन्य कोई उपाय ही नहीं है। इस दुनिया में किसी को इसके अलावा दूसरा कोई उपाय मिला ही नहीं है। क्योंकि इस जगत् में राग-द्वेष का मूल कारण ही यह है, मौलिक कारण ही यह है। यहीं से सारा राग-द्वेष पैदा हुआ है। सारा संसार यहीं से शुरू हुआ है। अतः यदि संसार बंद करना हो तो यहीं से बंद करना पड़ेगा। फिर भले ही आम खाओ, जो अच्छा लगे वह खाओ न! बारह रुपये दर्जनवाले आम खाओ न! कोई पूछनेवाला नहीं है। क्योंकि आम आपके विरुद्ध दावा नहीं करेंगे। आप उन्हें नहीं खाओगे तो, वे कोई कलह नहीं करेंगे जबकि स्त्री-पुरुष के संबंध में तो यदि आप कहो कि 'मुझे नहीं चाहिए।' तब वह कहेगी कि, 'नहीं, मुझे तो चाहिए ही।' वह कहे
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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