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________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) हमें रोटियाँ खिलाए, उतने दिन हमारी और यदि किसी और को खिलाए तो उसकी। अतः सभी महात्माओं से कह दिया था कि शंका मत रखना। नहीं तो भी मेरा कहना है कि जब तक देखा नहीं हो, तब तक उसे सत्य मानते ही क्यों हो, इस कलियुग में? यह है ही पोलम्पोल! जो मैंने देखा है उसका यदि आपसे वर्णन करूँ तो कोई भी व्यक्ति जीवित ही नहीं रहेगा, तो अब ऐसे काल में अकेले पड़े रहना चाहिए मस्ती में और ऐसा 'ज्ञान' साथ में हो तो उसके जैसा तो कुछ भी नहीं। अत: काम निकाल लेने जैसा है अभी। इसीलिए हम कहते हैं न कि, 'काम निकाल लो, काम निकाल लो!' ऐसा कहने का भावार्थ इतना ही है कि ऐसा किसी काल में नहीं आता और आया है तो जी जान लगाकर काम निकाल लो। तो आपकी समझ में आया न कि नहीं देखा होता तो कुछ भी नहीं था, यह तो देखा उसका ज़हर है! प्रश्नकर्ता : हाँ, देखने में आया इसीलिए ऐसा होता है। दादाश्री : यह सारा जगत् अंधेरे में, पोलम्पोल ही चल रहा है। हमें यह सब ज्ञान में दिखाई दिया और आपके देखने में नहीं आया है, इसलिए आप देखते ही भड़क जाते हो! अरे ! भड़कता क्यों हैं ? इसमें तो यह सब ऐसा ही चल रहा है, लेकिन आपको दिखता नहीं है। इसमें चौंकने जैसा है ही क्या? आप आत्मा हो तो भड़कने जैसा रहा ही कहाँ? यह तो जो सब जो 'चार्ज' हो चुका है उसीका 'डिस्चार्ज' है ! जगत् साफ-साफ 'डिस्चार्ज' रूपी है। यह जगत् 'डिस्चार्ज' से बाहर नहीं है। इसलिए हम कहते हैं न, 'डिस्चार्ज' रूपी है अतः कोई गुनहगार नहीं है प्रश्नकर्ता : तो उसमें भी कर्म का सिद्धांत ही काम करता है न? दादाश्री : हाँ, कर्म का सिद्धांत ही काम कर रहा है, और कुछ
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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