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________________ ७४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (उत्तरार्ध) बाकी शंका रखने जैसी चीज़ है ही नहीं, किसी भी प्रकार से। यह शंका ही इन्सान को मार डालती है। ये सभी शंका के कारण मर ही रहे हैं न! अतः इस दुनिया में यदि सबसे बड़ा कोई भूत है तो वह शंका का भूत है। सबसे बड़ा भूत ! शंका जगत् में कई लोगों को खा गई है, निगल गई है! इसलिए शंका पैदा ही मत होने देना। शंका पैदा होते ही खत्म कर देना। भले ही कैसी भी शंका पैदा हो, उसे पैदा होते ही खत्म कर देना, उसकी बेल बढने मत देना। वर्ना शंका चैन से नहीं बैठने देगी। वह किसी को चैन से नहीं बैठने देती। शंका ने तो लोगों को मार डाला है। शंका ने बड़े-बड़े राजाओं को, चक्रवर्तियों को भी मार डाला है। यदि लोग कहें कि 'यह नालायक इन्सान है।' तो भी हमें उसे लायक कहना है। क्योंकि शायद वह नालायक नहीं भी हो और यदि उसे नालायक कहोगे तो बहुत दोष लगेगा। सती हो और उसे यदि वेश्या कह दिया तो भयंकर गुनाह होगा, उसका फल कई जन्मों तक भुगतना पड़ेगा। अतः किसी के भी चरित्र के संबंध में मत बोलना। क्योंकि यदि वह गलत निकला तो? लोगों के कहने से, यदि आप भी कहने लगें तो उसमें आपकी क्या क़ीमत रही? हम तो कभी भी किसी के बारे में ऐसा नहीं बोलते और किसी के बारे में बोला भी नहीं हूँ। मैं तो हाथ ही नहीं डालूँ न ! वह ज़िम्मेदारी कौन ले? किसी के चरित्र से संबंधितं शंका नहीं करनी चाहिए। बहुत बड़ा जोखिम है। शंका तो हम कभी लाते ही नहीं। हम क्यों जोखिम उठाएँ? अंधेरे में आँखें कहाँ तक खींचें प्रश्नकर्ता : लेकिन शंका से देखने की मन की ग्रंथि बन गई हो तो वहाँ कौन सा एडजस्टमेन्ट लेना चाहिए? दादाश्री : यह जो आपको दिखाई देता है कि इसका चरित्र खराब है तो क्या वैसा पहले नहीं था? यह क्या अचानक उत्पन्न हो गया है? इसलिए इस जगत् को समझ लेने जैसा है कि यह तो ऐसा ही है। इस काल में चरित्र से संबंधित किसी का कुछ भी देखना ही नहीं चाहिए।
SR No.030110
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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