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________________ विकारों से विमुक्ति की राह (खं-1-2) दादाश्री : वह तो बंद नहीं होगा। आप यह रास्ता बदल लो। वह कहलाता है ज्ञान। उसे बंद करने का प्रयत्न करना, वही भ्रांति कहलाती है। भ्रांति हमेशा इफेक्ट को ही तोड़ने जाती है, जबकि ज्ञान कॉज़ेज़ को बंद करने जाता है। वासना, वस्तु नहीं, लेकिन रस प्रश्नकर्ता : मनुष्य की वासनाओं का मोक्ष कब होगा? दादाश्री : वासनाओं का तो हो ही जाएगा। वासनाएँ तो आप ने खड़ी की हैं, आप ही उसके जन्मदाता हो और विलय करनेवाले भी आप ही हो। __ आपकी वासना अलग और इस भाई की वासना अलग। हर एक की अलग-अलग वासनाएँ हैं न? और वासना तो साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है। अभी अगर कोई मांसाहारी व्यक्ति मित्र बन जाए न, तो फिर मांस खाना भी सीख जाएगा। अब यह वासना कहाँ से लाए थे? तब कहते हैं, साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स इकट्ठा होते हैं और वह नया नहीं है, यह गप्प नहीं है, और फिर पहले के कॉज़ेज़ के हिसाब से हैं, यह सब। इसलिए खाना सीख जाता है। दूसरा, संजोगो की वजह से वासनाएँ खड़ी होती है। बाकी एक लड़का है कि जो ऐसी जगह पर बड़ा होता है कि जहाँ कोई भी इंसान दिखे तक नहीं तो फिर वह विषय को नहीं समझ सकेगा। खाना-पीना समझ सकेगा। लेकिन वहाँ पर कोई जानवर भी नहीं होना चाहिए। उसे नज़र नहीं आना चाहिए। तो उसे कोई वासना नहीं होगी। यह तो सब वासनाओं का संग्रहस्थान है और वहीं पर जन्म होता है तो फिर क्या होगा उस संग्रहस्थान में से! वह नज़र आया कि तभी से वासना खड़ी हो जाती है, और यह भी आश्चर्य है कि जब ज्ञान प्राप्त होता है, तब वासनाएँ कहाँ से कहाँ गायब हो जाती है, वही समझ में नहीं आता।
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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