SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विकारों से विमुक्ति की राह (खं-1-2) ३७ तब वह नीरस रहता है और जब हम उसे विषय भोगने में कंट्रोल करते हैं, तब वह ज़्यादा उछलता है। आकर्षण रहता है, तो उसका क्या कारण है? दादाश्री : ऐसा है न, इसे मन का कंट्रोल नहीं कहते। जो अपने कंट्रोल को नहीं स्वीकारे, वह कंट्रोल है ही नहीं। कंट्रोलर होना चाहिए न! खुद यदि कंट्रोलर होगा तो कंट्रोल को स्वीकार करेगा। खुद कंट्रोलर है ही नहीं, मन नहीं मानता, मन आपकी सुनता नहीं है न? मन को रोकना नहीं है। मन के कॉज़ेज़ को रोकना है। मन तो खुद एक परिणाम है। वह परिणाम बताए बगैर नहीं रहेगा। वह परीक्षा का रिजल्ट है। परिणाम नहीं बदलता, परीक्षा बदलनी है। जिससे वह परिणाम उत्पन्न होता है, उन कारणों को बंद करना है। तो वह पकड़ में कैसे आएगा? किस वजह से उत्पन्न हुआ है मन? तब कहते हैं, विषय में चिपका हुआ है। 'कहाँ चिपका है' यह ढूँढ निकालना चाहिए और फिर वहाँ पर काटना है। प्रश्नकर्ता : उन विषयों में जाने से मन को कैसे रोकें ? दादाश्री : विषयों में जाने से रोकना नहीं है। जिन विषयों को मन खड़ा करता है, वही मन फिर पकड़ पकड़ता है। उन विषयों को हमें जहाँ तहाँ धीरे धीरे कम करना चाहिए। यानी उसके कॉज़ेज़ बंद करने चाहिए। हम पड़ोसी से कहें कि 'भाई, आप हमारे साथ झगड़ा मत करना। हमारे साथ तकरार मत करना।' फिर भी तकरार होती रहती हो तो हम नहीं समझ जाएँगे कि गलती कुछ और ही है। समझ जाएँगे या नहीं? तब पूछते हैं, 'कौन सी गलती?' तब कहता है, 'यह झगड़ा नहीं हो ऐसे कारण खड़े करो।' यानी वह झगड़ा तो होगा ही कुछ दिनों तक, लेकिन झगड़ा नहीं होने के कारणों का जब सेवन होगा, तब फिर वैसे परिणाम आएँगे। झगड़े के कारणों
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy