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________________ संपादकीय जीवन के जोखिमों को तो जान लिया, लेकिन अनंत जन्मों के जोखिमों की जो जड़ है, उसे जिसने जाना है तभी वह उसमें से छुटकारा पा सकता है ! और वह जड़ है विषय की ! इस विषय में तो कैसी भयंकर परवशता सर्जित होती है ? पूरी ज़िंदगी इसमें किसी का गुलाम बनकर रहना पड़ता है ! कैसे चलेगा? वाणी और वर्तन इतना ही नहीं, लेकिन उसके मन को भी दिन-रात संभालते रहना पड़ता है ! इसके बावजूद हाथ में क्या आएगा ?! संसार की निरी परवशता, परवशता और परवशता ! खुद पूरे ब्रह्मांड का मालिक बनकर संपूर्ण स्वतंत्र पद में आ सके, ऐसी क्षमता रखनेवाला विषय में डूबकर परवश बन जाता है। यह तो कैसी करुणाजनक स्थिति ! विषय की वजह से जलन का कारण विषय के प्रति घोर आसक्ति है और सर्व आसक्ति का आधार विषय के वास्तविक स्वरूप की ‘अज्ञानता' है। ‘ज्ञानीपुरुष' के बिना यह अज्ञानता कैसे दूर होगी ? ! जब तक विषय की मूर्च्छा में बरतता है, तब तक जीव के अधोगमन या ऊर्ध्वगमन का थर्मामीटर यदि आंकना हो तो वह उसकी विषय के प्रति क्रमशः रुचि या फिर अरुचि है ! लेकिन जिसे संसार के सभी बंधनों से मुक्त होना है, वह यदि सिर्फ विषय बंधन से मुक्त हो गया तो सर्व बंधन आसानी से छूट जाते हैं ! संपूर्ण ब्रह्मचर्य पालन से ही विषयासक्ति की जड़ निर्मूल हो जाए, ऐसा है। यथार्थ ब्रह्मचर्य पालन करने में, उसकी शुद्धता को संपूर्ण रूप से सार्थक करने के लिए 'ज्ञानीपुरुष' के आश्रय में रह कर एक जन्म बीत जाए तो वह अनंत जन्मों की भटकन का अंत ला दे, ऐसा है !! इसमें यदि कोई अनिवार्य कारण है तो वह है खुद का ब्रह्मचर्य पालन करने का दृढ़ निश्चय। उसके लिए ब्रह्मचर्य के निश्चय को तोड़नेवाले हर एक विचार को पकड़कर उसे जड़ से उखाड़ते रहना है । निश्चय का छेदन करनेवाले विचार, जैसे कि 'विषय के बिना रहा जा सकेगा या नहीं ? मेरे सुख का क्या? पत्नी के बिना रहा जा सकेगा या नहीं ? मुझे किसका 7
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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