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________________ विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1) अक्रम विज्ञान प्राप्ति करवाए मोक्ष की फिर भी यह विज्ञान किसी को भी, विवाहितों को भी मोक्ष में ले जाएगा लेकिन ज्ञानी की आज्ञानुसार चलना चाहिए। अगर कोई तेज़ दिमाग़वाला हो और वह कहे, 'साहब, मैं दूसरी शादी करना चाहता हूँ।' तेरा ज़ोर होना चाहिए। पहले क्या शादियाँ नहीं करते थे? भरत राजा की तेरह सौ रानियाँ थी, फिर भी मोक्ष में गए! यदि रानियाँ बाधक होतीं तो मोक्ष में जा सकते थे क्या? तो बाधक क्या है? अज्ञान बाधक है। इतने सारे लोग है, उन्हें कहा होता कि स्त्री को छोड़ दो, तो वे सब कब स्त्रियों को छोड़ते? और कब उनका हल आता? इसलिए कहा, स्त्रियाँ भले रही और दूसरी शादी करनी हो तो मुझसे पूछकर शादी करना, पूछे बगैर मत करना। देखो छूट दी है न सारी? कर्म के अधीन स्त्री-पुरुष बने हैं। एक पेड़ पर क्या सभी पंछी तय करके बैठते हैं ? नहीं! उसी तरह ये सभी एक परिवार में जन्म लेते हैं। किसी के तय किए बिना ही कर्म के उदयानुसार ही घर के लोग इकट्ठे होते हैं और फिर बिखर भी जाते हैं। उसमें लोगों ने एडजेस्टमेन्ट लेकर, व्यवस्थित किया। यानी यह लड़का है तो उस पर पुत्रभाव रहता है। दूसरा, बहन के भाव रहते हैं, स्त्री के भाव रहते हैं। अभी लोगों में वे भाव विकृत हो गए हैं। बाकी, पहले किसी पर बहन का भाव आ जाए तो दूसरा भाव होता ही नहीं था। बहन कहा यानी सिर्फ बहन ही। माँ यानी माँ। दूसरा विचार ही नहीं आता था लेकिन अभी तो सभी जगह बिगड़ ही गया है। इतना आवश्यक है, ब्रह्मचर्य के कैन्डिडेट के लिए यह तो 'जैसा है वैसा' नहीं दिखने से मूर्छा रहती है। जब तक स्त्री को 'जैसा है वैसा' आरपार नहीं देख सके, तब तक विज़न नहीं खुलता। जब मन विषय में खुला होगा (जब विषय
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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