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________________ विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1) १९ नहीं दिखेगा, तो उसे आराम से खा। इसे तो काटने से खून निकलता है, लेकिन उसकी जागृति नहीं रहती न? इसलिए मार खाता है। इसलिए यह संसार खड़ा रहा है। इस ज्ञान से जागृति धीरे धीरे बढ़ती जाती है, विषय खत्म होता जाता है। मुझे बंद करने के लिए कहना नहीं पड़ता। अपने आप ही आपका बंद होता जाता है। दूषमकाल में हमेशा इंसान का मन कैसा होता है कि, 'कल से शक्कर नहीं मिलेगी' ऐसा कहा कि सभी भाग-दौड़ करके शक्कर ले आएँगे। यानी मन ऐसे हैं कि टेढे चलें। इसीलिए हमने सभी तरह की छूट दी है। दूषमकाल में मन पर बंधन लगाएँ कि 'ऐसा करो' तो मन उल्टा चले बिना नहीं रहेगा। इस दूषमकाल का स्वभाव है कि यदि रोका जाए तो बल्कि पूरे जोश के साथ उसी में पड़ेगा। इसलिए इस काल में हमारे निमित्त से अक्रम प्रकट हुआ है, जहाँ किसी भी तरह की रोकटोक नहीं है। इसलिए फिर मन जवान होता ही नहीं, मन बूढ़ा हो जाता है।' बूढ़ा हुआ कि निर्बल हो जाता है, फिर खत्म हो जाता है। जवान तो कब होता है कि जब उसे रोकें, तब। तृप्त इंसान विषय की गंदगी में हाथ ही नहीं डालेगा। यह तो भीतर तृप्ति नहीं है, इसलिए इस गंदगी में फँस गए हैं। वीतरागों का विज्ञान, वही तृप्ति लाता है। कितने ही जन्मों का गिनें तो पुरुषों ने इतनी-इतनी स्त्रियों से शादी की और स्त्रियों ने पुरुषों से शादी की, फिर भी अभी तक उन्हें विषय का मोह नहीं टूटता। तब फिर इसका अंत कब आएगा? इससे अच्छा तो हो जाओ अकेले, ताकि झंझट ही खत्म हो जाए न?! चल रहे है कहाँ? दिशा कौन सी? यह इन्जिन होता है, तो कोई इंसान इन्जिन में तेल डालता रहे, उस इन्जिन को चलाता रहे, ऐसा एकाध साल तक करता रहे तो आसपास के लोग क्या कहेंगे उसे? 'अरे, इन्जिन को कोई पट्टा जोड़कर काम करवा ले न।' उसी तरह लोग जीवन जीने
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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