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________________ १४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) विचारशील इंसान विषय में सुख कैसे मान बैठा है, उसी पर मुझे आश्चर्य होता है? विषय का पृथक्करण करे तो दाद को खुजलाने जैसा है। हमें तो बहुत विचार आते हैं और लगता है कि अरेरे! अनंत जन्मों से यही किया? जितना कुछ हमें पसंद नहीं है, वह सबकुछ विषय में है। निरी दुर्गंध है। आँखों को देखना अच्छा नहीं लगता। नाक को सूंघना अच्छा नहीं लगता। तूने सूंघकर देखा था? सूंघकर देखना था न? तो वैराग तो आ जाता। कान को नहीं रुचता। सिर्फ चमड़ी को रुचता है। लोग तो पैकिंग को देखते हैं, माल को नहीं देखते। जो चीज़ पसंद नहीं है, पैकिंग में तो वही चीजें भरी हुई है। निरी दुर्गंध का बोरा है! लेकिन मोह के कारण भान नहीं रहता और इसीलिए तो पूरा जगत् चकरा गया है। यह बांद्रा स्टेशन की जो खाड़ी आती है, उसकी दुर्गंध पसंद है? उससे भी बरी दुर्गंध इस पैकिंग में हैं। आँखों को पसंद नहीं आएँ, ऐसे चित्र-विचित्र पार्ट्स अंदर है। इस बारे में तो बेहद विचित्र गंदगी है। यह अपने अंदर जो हृदय है, उसी लौंदे को निकालकर हाथ में दे दे तो? और कहे कि अपने साथ हाथ में रखकर सो जा, तो? नींद ही नहीं आएगी न? यह तो समुद्र के विचित्र जीव जैसा दिखता है। जो पसंद नहीं है, वह सभी कुछ इस देह में है। ये आखें यों बहुत सुंदर दिखती हों, लेकिन मोतियाबिंद हो जाए और उन सफेद आँखों को देखा हो तो? अच्छा नहीं लगेगा। ओहोहो सबसे ज़्यादा दुःख इसी में हैं। यह शराब जो नशा चढ़ाती है, उस शराब की दुर्गंध इंसान को अच्छी नहीं लगती और यह विषय तो सर्व दुर्गंध का कारण है। सभी नापसंद चीजें वहाँ पर है। अब क्या होगा यह आश्चर्य? इसमें से छूट गए तो फिर राजा। जिसे भूख ही नहीं लगी हो उसे क्या? जो भूखा होगा वही होटल में जाएगा न? जहाँ-तहाँ झाँकता रहेगा, लेकिन जिसने खाना खाया है, खाकर आराम से टहल रहा है, रस-रोटी खाकर टहल रहा है, वह क्यों होटल में जाएगा? गंदगीवाली
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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