SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्लेषण, विषय के स्वरूप का (खं-1-1) नहीं रहता और भान नहीं रहता इसलिए यह संसार खड़ा रहा रात को जलेबी खाता है तो सुबह में जलेबी की क्या दशा होगी? ऐसा भान रहता है क्या लोगों को? क्यों भान नहीं रहता? क्योंकि पुद्गल के गुणों में ही अनुराग है उसे। यह तो पुद्गल है, यह पूरण (चार्ज होना, भरना) हुआ है और वह जो है, वह गलन (डिस्चार्ज होना, खाली होना) है ऐसा भान ही नहीं है न? जब गलन होता है सुबह-सुबह, तब घिन आती है? अरे, दोनों पुद्गल ही हैं। दोनों पुद्गल के ही गुण हैं, लेकिन उसे अशुचि का भान ही नहीं है, इसलिए जलेबी खाते समय टेस्ट से भोगता है न?! प्रश्नकर्ता : जब आत्मा और पुद्गल का संयोग होता है तब हर किसी को ऐसा ही होता है न? दादाश्री : नहीं, लेकिन जब तक उसे भ्रांति है, तभी तक। 'मैं कौन हूँ' उसका भान नहीं रहा इसलिए अभानता में ऐसा चलता रहता है। भान होने के बाद खुद अलग हो गया। बाद में उसे विषयसुख फीके लगते हैं। जलेबी खाने के बाद चाय पी है? तो फीकी लगती है न? फिर हम चाय में कितना भी टेस्ट करने जाएँ, लेकिन टेस्ट नहीं आता। उसी तरह यह जगत् भी असरवाला है! अरे, यों अच्छी खीर खाई हो, उसकी भी उल्टी हो जाए तो कैसी दिखेगी? सुंदर, हाथ में पकड़ सकें, ऐसी दिखेगी? अभी जो अंदर डाला था, वही वापस निकला है, उसे हाथ में क्यों नहीं पकड़ सकते? यानी अंदर अशुचि का संग्रहस्थान है। अंदर डालते ही अशुचि हो जाती है। कटोरी साफ हो, खीर अच्छी हो, लेकिन अंदर डालते ही, वही की वही खीर फिर उल्टी करके दी जाए कि फिर से पी जाओ, तो नहीं पीएगा और कहेगा, 'जो होना हो, वह हो, लेकिन नहीं पीऊँगा।' यानी कि ऐसा सब भान रहता नहीं है न!
SR No.030109
Book TitleSamaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy